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6.8.15

आइसा कार्यकर्ताओ ने लखनऊ विवि गेट पर धरना देकर लाल-नीली बत्ती हटाने की मांग की


-रामजी मिश्र 'मित्र'-


-छात्र बोले एलयू प्राक्टर इस्तीफा दें।
-छात्र नेता बोले ल0वि0वि0 मे हुये सभी घोटालों की लोकयुक्त जांच करवाओ।

आज ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) के कार्यकर्ताओ ने लखनऊ विश्वविद्यालय मे गेट न0-1 पर सरस्वती प्रतिमा के पास धरना दिया और एलयू प्राक्टर के इस्तीफे की मांग, सभी घोटालों की लोकयुक्त जांच करवाने तथा वीसी व प्राक्टर के वाहनो से लाल व नीली बत्ती हटाये जाने की मांग की।

धरने को संबोधित करते हुये आइसा नेता पूजा शुक्ला ने कहा "हमारे द्वारा दिये गए शिकायत पत्र पर बिना कोई कार्यवाही किए, बिना वुमेन सेल को केस की इंक्वायरी दिये, बिना किसी जांच के, दोषी छात्रों को बचाते हुये, एबीवीपी के प्रत्यावेदन को सत्य मानते हुये, प्राक्टर साहब ने उल्टे शिकायत कर्ताओ को ही “कारण बताओ नोटिस” जारी किया जो कि न्याय के बुनियादी सिद्धांतो के प्रतिकूल है। और इससे पुष्ट होता है कि प्राक्टर सत्ताधारी छात्र संगठन (एबीवीपी) को संरक्षण देते हुये पक्षपात पूर्ण न्याय कर रहे है, जो कि एक न्यायिक पद पर बने रहने के प्रतिकूल है। इसलिए कुलानुशासक अपने पद से इस्तीफा दें।"

आइसा के कैंपस अध्यक्ष रवीन्द्र प्रताप सिंह ने अपने सम्बोधन में कहा कि 'विश्वविद्यालय जो कि विश्व मे ज्ञान के केंद्र माने जाते है वही लखनऊ विश्वविद्यालय भष्टाचार और घोटालों का केंद्र बन चुका है, अभी हाल ही मे “पुवर ब्वायज़ फंड” घोटाला सामने आया है, इससे पहले भी कई घोटाले उजागर हुये है, परंतु कोई कार्यवाही नहीं हुई। इसलिए इन सभी घोटालों की लोकयुक्त जांच हो।'

आइसा के प्रदेश अध्यक्ष सुधांशु बाजपेयी ने कहा कि "एलयू के कुलपति व कुलानुशासक अपने वाहनो पर जो लाल व नीली बत्ती लगाकर चल रहे है, यह इतने सम्मानित पद पर होने के बावजूद माननीय न्यायालय के आदेश की अवहेलना पद की गरिमा व नैतिकता के खिलाफ है। तथा यह परिवहन नियमों के भी खिलाफ है, कुलपति व कुलानुशासक महोदय को लाल व नीली बत्ती लगाने का कोई अधिकार नहीं है, अतः ये लोग अपने वाहनो पर से लाल व नीली बत्ती तुरंत हटवा लें।" 

इधर मामले के सम्बन्ध में लखनऊ ट्रैफिक पुलिस के आला अधिकारी भी बेबस नजर आ रहे हैं। ट्रैफिक के उच्च अधिकारियों को जब जब संपर्क करने का प्रयास किया गया उनके द्वारा व्यस्तता का हवाला दिया जाता रहा। इधर प्रकरण से सम्बंधित जब कुलपति एस बी निमसे से बात करने का प्रयास किया गया तो फोन होल्ड करते हुए मामले पर चुप्पी साध ली गयी। वहीँ प्रॉक्टर मनोज दीक्षित से भी मामले पर बात करनी चाही गई तो उन्होंने फोन ही नहीं रिसीव किया। लखनऊ के अंदर खुले आम न्यायलय के आदेशों की उड़ती धज्जियां प्रशासन और जिम्मेदारों को सवालों के घेरे में लेती हैं जिस पर हर जिम्मेदार मौन है।

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