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21.9.15

चुनार में एक संत हैं स्वामी अड़गड़ानंद, उनकी सुनाई एक कहानी सुनिए


Krishna Kant : चुनार में एक संत हैं स्वामी अड़गड़ानंद. बीए में एक बार मेरे भाई मुझे वहां ले गए थे. अड़गड़ानंद एक कहानी सुनाते हैं— एक गांव की घटना है. नवरात्र का महीना था. रात को एक चाची का पेट खराब हो गया. सुबह चार बजे उनका बहुत तेज पेट दर्द हुआ. चाची लोटा लेकर भागीं. लेकिन परेशानी बढ़ गई. चाची मजबूरी में पगडंडी पर ही बैठ गईं. हालांकि चाची को इस बात का ख्याल था कि यह रास्ता है और अभी लोग आएंगे तो पांव पड़ेगा. उन्होंने इधर उधर से मिट्टी बटोरी और मैले के ऊपर डालकर ऊंचा कर दिया और घर चली गईं.



थोड़ी देर बात कुछ अंधेरा छंटा तो एक दूसरी महिला फूल तोड़ने गई. लौटी तो उसने मिट्टी का ढेर देखा. उसने सोचा कि देर शाम इधर से गई थी तो यहां समतल था, नवरात्र चल रहा है, जरूर कोई चमत्कार हुआ है. उसने उस मिट्टी के ढेर पर फूल चढ़ा दिए. उसके बाद महिला ने जाकर मुहल्ले में बताया कि रास्ते में देवी परगट हो गई हैं. सुबह होते होते गांव भर में हल्ला मच गया कि चौडगरे पर देवी परगट हो गई हैं. चूंकि देवी का प्राकट्य धूल के ढेर के रूप में था इसलिए नाम पड़ गया धूरन देवी. पूरा गांव वहां पर जल चढ़ाने और पूजा करने के लिए टूट पड़ा. भारत में धूरन देवियों की भरमार है. यहां देवी—देवताओं का अवतार ऐसे होता है. नोट 1: भक्त लोग आहत न हों, यह कहानी स्वामी अड़गड़ानंदद की है. मैं सिर्फ प्रस्तोता हूं. नोट 2: बनारसी भक्तों द्वारा रचित कल्कि अवतार पर यह चालीसा पढ़ें तो आप सर्वशक्ति संपन्न हो सकते हैं. आप जो चाहे कर सकते हैं. वेदों से विमान निकाल सकते हैं या खड़ाऊं पहनकर समुद्र की सतह पर कबड्डी खेल सकते हैं. बोलो सब भक्तन की जय!

2 comments:

indianrj said...

कई बार ऐसा होता है कि लोग जिसको पसंद करते हैं, उसके लिए कभी मंदिर कभी प्रतिमा और कभी उनकी चालीसा बना कर चर्चा में आ जाते हैं। लेकिन महत्वपूर्ण यह है की उक्त व्यक्ति जिसके लोग इस हद तक प्रंशसक हैं, तो उस पर दोष लगाना कहाँ तक उचित है। अक्सर कोई भी अपने प्रशंसकों की ऐसी हरकतों से सहमत नहीं होता बल्कि ऐसी हरकतों से नर्वस महसूस करता है।

indianrj said...

कई बार ऐसा होता है कि लोग जिसको पसंद करते हैं, उसके लिए कभी मंदिर कभी प्रतिमा और कभी उनकी चालीसा बना कर चर्चा में आ जाते हैं। लेकिन महत्वपूर्ण यह है की उक्त व्यक्ति जिसके लोग इस हद तक प्रंशसक हैं, तो उस पर दोष लगाना कहाँ तक उचित है। अक्सर कोई भी अपने प्रशंसकों की ऐसी हरकतों से सहमत नहीं होता बल्कि ऐसी हरकतों से नर्वस महसूस करता है।