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9.2.16

निदा फाजली को श्रद्धांजलि : तुम्हारी मौत की सच्ची खबर, जिसने उड़ाई थी, वो झूठा था


निदा फ़ाज़ली साहब के न रहने पर उनकी वो नज़्म याद आती है जिसे उन्होंने अपने पिता के गुजर जाने पर लिखा था...

''तुम्हारी कब्र पर मैं, फ़ातेहा पढ़ने नहीं आया, मुझे मालूम था, तुम मर नहीं सकते.''

इस नज़्म को आज पढ़ते हुए खुद को मोबाइल से रिकार्ड किया. इसी नज़्म की ये दो लाइनें:

तुम्हारी मौत की सच्ची खबर, जिसने उड़ाई थी, वो झूठा था,
वो तुम कब थे? कोई सूखा हुआ पत्ता, हवा मे गिर के टूटा था।


पूरी नज़्म यूट्यूब पर डाल दिया. अच्छा तो नहीं पढ़ पाया लेकिन बस दिल कर रहा था कि इसे पढ़ूं और निदा साहब को श्रद्धांजलि दूं.

असल में निदा साहब नहीं गए हैं. हमारे और आपके भीतर से क्रिएटिविटी का थोड़ा थोड़ा हिस्सा खत्म हो गया है. एक आदमी इतना अच्छा इतना सारा लिख सकता है, यकीन नहीं होता. कमाल की संवेदना और समझ वाले शख्स थे निदा साहब.

यकीन नहीं होता, बस गर्व होता है कि हम सब उस दौर में थे जब निदा साहब सशरीर मौजूद थे. मैं उनसे भले न मिला और न उन्हें देखा हो पर लगता है जैसे बेहद करीबी थे हम. संवेदना और समझ की उदात्तता हो तो जुड़ाव, प्रेम, अपनापा जैसी चीजें निजी मुलाकातों का मोहताज नहीं होतीं.

इसी सोच और भाव से लबरेज होकर मैंने निदा साहब की रचना का आज दोपहर पाठ किया. रिकार्ड किया. और, यूट्यूब पर डाला. आप भी सुनिए.

लिंक ये है:

https://goo.gl/URuIP5

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