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4.3.16

भारतीय संस्कृति में नारी कल, आज और कल

डॉ.सौरभ मालवीय

‘नारी’ इस शब्द में इतनी ऊर्जा है कि इसका उच्चारण ही मन-मस्तक को झंकृत कर देता है, इसके पर्यायी शब्द स्त्री, भामिनी, कान्ता आदि है, इसका पूर्ण स्वरूप मातृत्व में विलसित होता है। नारी, मानव की ही नहीं अपितु मानवता की भी जन्मदात्री है, क्योंकि मानवता के आधार रूप में प्रतिष्ठित सम्पूर्ण गुणों की वही जननी है। जो इस ब्रह्माण्ड को संचालित करने वाला विधाता है, उसकी प्रतिनिधि है नारी। अर्थात समग्र सृष्टि ही नारी है इसके इतर कुछ भी नही है। इस सृष्टि में मनुष्य ने जब बोध पाया और उस अप्रतिम ऊर्जा के प्रति अपना आभार प्रकट करने का प्रयास किया तो वरवश मानव के मुख से निकला कि –


त्वमेव माता च पिता त्वमेव

त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।

त्वमेव विधा द्रविणं त्वमेव

त्वमेव सर्वं मम देव देव॥

अर्थात हे प्रभु तुम माँ हो ............।

अक्सर यह होता है कि जब इस सांसारिक आवरण मैं फंस जाते या मानव की किसी चेष्टा से आहत हो जाते हैं तो बरबस हमें एक ही व्यक्ति की याद आती है और वह है माँ । अत्यंत दुःख की घड़ी में भी हमारे मुख से जो ध्वनी उच्चरित होती है वह सिर्फ माँ ही होती है। क्योंकि माँ की ध्वनि आत्मा से ही गुंजायमान होती है ।  और शब्द हमारे कंठ से निकलते हैं लेकिन माँ ही एक ऐसा शब्द है जो हमारी रूह से निकलता है। मातृत्वरूप में ही उस परम शक्ति को मानव ने पहली बार देखा और बाद में उसे पिता भी माना। बन्धु, मित्र आदि भी माना। इसी की अभिव्यक्ति कालिदास करते है कि-

वागार्थविव संप्रक्तौ वागर्थ प्रतिपत्तये।

जगतः पीतरौ वन्दे पार्वती परमेश्वरौ ॥ (कुमार सम्भवम)

जगत के माता-पिता (पीतर) भवानी शंकर, वाणी और अर्थ के सदृश एकीभूत है उन्हें वंदन।

इसी क्रम में गोस्वामी तुलसीदास भी यही कहते  हैं –

जगत मातु पितु संभु-भवानी। (बालकाण्ड मानस)

अतएव नारी से उत्पन्न सब नारी ही होते है, शारीरिक आकार-प्रकार में भेद हो सकता है परन्तु, वस्तुतः और तत्वतः सब नारी ही होते है। सन्त ज्ञानेश्वर ने तो स्वयं को “माऊली’’ (मातृत्व,स्त्रीवत) कहा है।

कबीर ने तो स्वयं समेत सभी शिष्यों को भी स्त्री रूप में ही संबोधित किया है वे कहते है –

दुलहिनी गावहु मंगलाचार

रामचन्द्र मोरे पाहुन आये धनि धनि भाग हमार

दुलहिनी गावहु मंगलाचार । - (रमैनी )

घूँघट के पट खोल रे तुझे पीव मिलेंगे

अनहद में मत डोल रे तुझे पीव मिलेंगे । -(सबद )

सूली ऊपर सेज पिया कि केहि बिधि मिलना होय । - (रमैनी )

जीव को सन्त कबीर स्त्री मानते है और शिव (ब्रह्म) को पुरुष यह स्त्री–पुरुष का मिलना ही कल्याण है मोक्ष और सुगति है ।

भारतीय संस्कृति में तो स्त्री ही सृष्टि की समग्र अधिष्ठात्री है, पूरी सृष्टि ही स्त्री है क्योंकि इस सृष्टि में बुद्दि ,निद्रा, सुधा, छाया, शक्ति, तृष्णा, जाति, लज्जा, शान्ति, श्रद्धा, चेतना और लक्ष्मी आदि अनेक रूपों में स्त्री ही व्याप्त है। इसी पूर्णता से स्त्रियाँ भाव-प्रधान होती हैं, सच कहिये तो उनके शरीर में केवल हृदय ही होता है,बुद्दि में भी ह्रदय ही प्रभावी रहता है, तभी तो गर्भधारण से पालन पोषण तक असीम कष्ट में भी आनंद की अनुभूति करती रहती।कोई भी हिसाबी चतुर यह कार्य एक पल भी नही कर सकता। भावप्रधान नारी चित्त ही पति, पुत्र और परिजनों द्वारा वृद्दावस्था में भी अनेकविध कष्ट दिए जाने के बावजूद उनके प्रति शुभशंसा रखती है उनका बुरा नहीं करती,जबकि पुरुष तो ऐसा कभी कर ही नही सकता क्योंकि नर विवेक प्रधान है, हिसाबी है, विवेक हिसाब करता है घाटा लाभ जोड़ता है, और हृदय हिसाब नही करता। जयशंकर प्रसाद ने कामायनी में लिखा है-

यह आज समझ मैं पायी हूँ कि

दुर्बलता में नारी हूँ।

अवयन की सुन्दर कोमलता

लेकर में सबसे हारी हूँ ।।

भावप्रधान नारी का यह चित्त जिसे प्रसाद जी कहते है-

नारी जीवन का चित्र यही

क्या विकल रंग भर देती है।

स्फुट रेखा की सीमा में

आकार कला को देती है।।

परिवार व्यवस्था हमारी सामाजिक व्यवस्था का आधार स्तंभ है,इसके दो स्तम्भ है- स्त्री और पुरुष।परिवार को सुचारू रूप देने में दोनों की भूमिका अत्यंत महतवपूर्ण है,समय के साथ मानवीय विचारों में बदलाव आया है|कई पुरानी परम्पराओं,रूढ़िवादिता एवं अज्ञान का समापन हुआ।महिलाएँ अब घर से बाहर आने लगी है कदम से कदम मिलाकर सभी क्षेत्रों में अपनी धमाकेदार उपस्थिति दे रही है,अपनी इच्छा शक्ति के कारण सभी क्षेत्रों में अपना परचम लहरा रही है अंतरिक्ष हो या प्रशासनिक सेवा,शिक्षा,राजनीति,खेल,मिडिया सहित विविध विधावों में अपनी गुणवत्ता सिद्ध कर कुशलता से प्रत्येक जिम्मेदारी के पद को सँभालने लगी है, आज आवश्यकता है यह समझने की  कि नारी विकास की केन्द्र है और भविष्य भी उसी का है, स्त्री के सुव्यवस्थित एवं सुप्रतिष्ठित जीवन के अभाव में सुव्यवस्थित समाज की रचना नहीं हो सकती। अतः मानव और मानवता दोनों को बनाये रखने के लिए नारी के गौरव को समझना होगा।

डॉ. सौरभ मालवीय

सहायक प्राध्यापक

माखनलाल चतुर्वेदी

राष्‍ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्‍वविद्यालय, भोपाल

मो. +919907890614


1 comment:

Anonymous said...

media ko news chlane k liye chahiye pease agar pease do to dor k aayenge par aese kisi ka kahi murder ho jaye kisi ka rep ho jaye to nahi aayenge chor h sab k sab saale