Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

7.3.16

Story पुनरावृत्ति (एक लोफर और एक समाज की कहानी)


-सक्षम द्विवेदी-

हर शहर में चाय की कुछ दुकानें ऐसी होती हैं जो रात भर खुली रहती हैं। वहां रात भर महफिल लगाने वालों की अपनी एक ऐसी ही कम्युनिटी बन जाती है जैसी सुबह गार्डेन में मार्निंग वाक करने वालों की। साधरणतया लोग किसी एक ही कम्यूनिटी का हिस्सा बन सकते हैं क्योंकि जो रात में देर से सोता है सुबह जल्दी नहीं उठ पाता लेकिन अद्वैत इन दोनों ही समुदायों को देखता था क्योंकि वो बहुत दिनों से ठीक से सोया ही नहीं था, तो जागना कैसा? वो इन दोनों में से किसी भी कम्यूनिटी का हिस्सा तो नहीं था परन्तु वो देर तक चाय की दुकान और सुबह गार्डेन दोनों जगह ही मौजूद रहता था।


रात में चाय की दुकानों में आने वाले ज्यादातर लोग अपनी छोटी-मोटी दुकानों को बन्द करने के बाद वहां बैठा करते थे और मार्निंग वाक करने वालों का एक बड़ा हिस्सा नौकरीपेशा लोगों का होता था। इन दोनों समुदायों में एक विशेष अंतर यह होता था कि जहां माॅर्निग वाॅक करने वाले ‘फैट’ कम करने को लेकर चिंतित रहते थे वहीं चाय की दुकान वाले बढ़ाने को लेकर। और, राजनीति तो ऐसा विषय है जिसकी चर्चा हर जगह होती ही है बस भाषाई मर्यादा में थोड़ा अंतर होता है बाकी अर्थबोध हर जगह समान ही होता है।

अद्वैत आखिरी बार ठीक से कब सोया था उसे खुद भी याद नहीं था और वो याद करना भी नहीं चाहता था। वो अपने क्षेत्र का एक घोषित लोफर था, उसे एक लोफरों के कालेज से भी हिंसात्मक गतिविधियों में शामिल रहने के आरोप में मात्र परीक्षा देने की परमीशन पर काॅलेज से रिस्टीकेट कर दिया गया था। हालांकि उसने सर्वाधिक अंको के साथ परीक्षा उत्तीर्ण की थी। सच तो ये था कि अद्वैत में हिंसा को छोड़कर ऐसा कोई भी दुर्गुण नहीं था जिससे उसे लोफर समझा जाए पर लोग समझते थे। वो पढ़ता तो बहुत कुछ था लेकिन लिखता बस दो ही चीज  एक डायरी और दूसरा मोबाइल में मैसेज।

अद्वैत कभी-कभी चाय की दुकान में बैठकर ही डायरी लिखा करता था,एक दिन उसकी डायरी उसी दुकान पर छूट गयी, अगले दिन चाय वाले ने उसे दिया, ये तो नहीं पता कि चाय वाले ने उसकी डायरी पढ़ी या नहीं पर उसके बाद से चाय वाले के भाव अद्वैत के प्रति कुछ बदल गये। उस चाय की दुकान में बैठने की कोई व्यवस्था नहीं थी और रात 2-3 बजे सड़क पर यातायात न के बराबर होता था इसीलिए लोग सड़क के डिवाइडर या इघर-उधर बैठ जाया करते थे लेकिन चाय वाला अद्वैत को अपने ठेले के नीचे से निकालकर बैठने के लिए एक कनेश्टर देने लगा,उसे लगा कि इस दुकान में शायद एक यही चीज है जो कुछ अतिरिक्त सुविधा का भाव प्रकट कर सकती है। अद्वैत ने कनेश्टर लिया और उसको उल्टा करके आपस में बात कर रहे लोगों से कुछ दूर बैठ गया। वो अपना मोबाइल निकालकर कुछ मैसेज टाइप करने लगा और इधर फैजल,सौरभ,विजय और अनुज की चर्चा शबाब पर आने लगी।

सौरभ कह रहा था कि देश में अब सभी लोग पहले से कहीं ज्यादा सुरक्षित महसूस कर रहें हैं विजय उसकी बातों का खण्डन कर रहा था सौरभ ने अपने बात के पक्ष में प्रबल तर्क रखते हुये कहा कि हम सुरक्षित है तभी तो रात दो बजे यहां आराम से बैठें हैं ये सुनकर अद्वैत का ध्यान एकबार उसकी तरफ गया और उसे याद आया अभी दो दिन पहले ही सौरभ की दुकान पर कुछ लोग जबरदस्ती चंदा मांगने आये थे तब उसने तीन बार पुलिस को काल किया था पर एक बार भी नहीं आयी और तब अद्वैत ने ही हस्तक्षेप कर सौरभ को उस समस्या से निकाला था।

अद्वैत फिर टाइप करने लगा पर इन चारों की आवाजें भी वो स्पष्ट रूप से सुनता रहता था। फैजल कह रहा था कि देश में विकास की गंगा बह रही है और बहती ही जा रही है। विदेशों से इतनी कंपनीयां आ रही हैं कि लोगों को घर से बुलकार रोजगार मुहैय्या कराया जाएगा। ये बात सुनकर अद्वैत के स्मृति पटल पर एक दिन पहले की वो घटना सामने आ गयी जब फैजल की सड़क के किनारे की दुकान को नगर निगम बर्बाद करने पर आमादा था फैजल के लाख गिड़गिड़ाने पर भी कोई कुछ न कर सका उस दिन अद्वैत भी फैजल का वो एक बाक्स ही बचा सका जिसमें फैजल का पुत्र आलम पंपलेट इकट्ठा किया करता था। कई लोगों को कुछ न कुछ कलेक्शन करने की आदत होती है। तक्षशिला अपार्टमेण्ट के बी 07 फ्लैट में रहने वाली रोहिणी को पिकासो और लियोनार्डा द विंची के बनाये चित्रों के संग्रह की आदत थी वो इन दोनो के चित्रों का कई रूपों में संग्रह कर चुकी थी।

तमाम कोशिशों के बाद भी पिकासेा की पेंटिग बने प्लेट का सेट न मिलने से वो उधर बीच काफी परेशान रहा करती थी। अद्वैत उससे कभी-कभी मजाक में कहता था तुम बंगाली हो तुमको तो अवीन्द्रनाथ और रवि वर्मा के चित्रों का संग्रह करना चाहिये था कहां विदेशियों के चक्कर में फंसी हो।इसी तरह रेलवे क्वाटर में रहने वाले राजीव को डाक टिकट संग्रह करने का शौक था। अद्वैत अक्सर उसके लिए भी कुछ नये तरह के डाक टिकट लाने की कोशिश करता था और उससे कहता भी था तुम्हे तो रेलवे के टिकटों का संग्रह करना चाहिये था। वो तुम्हे आराम से मिल जातेे। लकिन अद्वैत ने कभी भी फैजल के पुत्र आलम के संग्रह की आदत का मजाक नहीं उड़ाया अद्वैत कभी-कभी सिर्फ उसी के लिए विभिन्न पार्टियों की चुनावी रैलीयों में जाता था और वहां से ढेर सारे पंपलेट्स लाकर उसे देता था। इसीलिए अद्वैत ने नगर निगम कर्मियों से नोकझोंक के दौरान आलम का बाॅक्स निकालकर अपने पास रख लिया था और बाद में आलम को दे दिया था। बरहाल तब रात साढ़े तीन बजे का समय होने लगाऔर अब सब धीरे-धीरे जाने लगे लगभग सुबह साढ़े चार बजे चाय की दुकान का मालिक अपने पुत्र के दुकान पर आ जाने पर चला जाता था और लगभग इसी समय अद्वैत गार्डेन चला जाता था।

गार्डेन का अपना एक अलग सीन हुआ करता था, अद्वैत थोड़ा टहलने के बाद एक अंजीर के पेड़ के नीचे वाली सीट पर बैठ जाया करता था। वहां पर उसे एक सांप के फुंकारने जैसी आवाज सुनाई पड़ती थी। एक दिन जब वो आवाज के पीछे-पीछे गया तो देखा कि अंजीर से तीसरे पेड़ के ओट में एक आदमी पेट तेजी से अंदर बाहर करके ये आवाजें उत्पन्न कर रहा था।उस आदमी ने बताया कि ये कपालभाती प्राणायाम है इससे पेट की सारी समस्याएं समूल नष्ट हो जातीं हैं। अद्वैत ने पूछा कि आप कब से ये प्राणायाम कर रहें है उसने बताया कि विगत सात वर्शों से अनवरत। अद्वैत ने पूछा आपकी उम्र कितनी है उसने बताया कि 78 वर्श तब तो आपकी पेट की सारी समस्याएं समूल नष्ट हो चुकीं होगीं। उसने कहा अभी नहीं पर नियन्त्रित हैं। अद्वैत ने बोला मुझे लगता है आज से ठीक सात साल बाद आप चाहे कुछ करे या ना करें आपकी पेट सहित सारी समस्याएं समूल नष्ट हो जाएंगी। उसको शायद अद्वैत की ये बात अच्छी नहीं लगी और वो उठकर चला गया। वहां पर लोग पाॅल्यूशन को लेकर खासा परेशान दिखते थे कभी-कभी तो लगता था कि दूसरा कोपेनहेगेन काॅफ्रेंस यहीं पर हो रहा है। वहां पर एक ऐसे विशिष्ठ व्यक्ति आया करते थे जिनकी मांग भी अपने आप में विशिष्ठ थी वो कहते थे कि मुझे शीर्षासन ऐसे कराया जाए जिससे मेरे टी0शर्ट के ब्रांड का लोगो दिखना न बंद हो,अद्वैत को उम्मीद थी की योगगुरू उन्हे डांटते हुए कहेंगे कि योग की अपनी मर्यादाएं हैं उसे ऐसे ही किया जाता है परन्तु योगगुरू ऐसा कुछ भी न बोलकर वो शीर्षासन करने की पद्धति में ही परिवर्तन कराने लगे।

सुबह के बाद अद्वैत का ज्यादातर वक्त चैराहों पर दोस्तों के साथ ही बीतता था। और शाम रोहिणी के साथ। अद्वैत की रेाहिणी से पहली बार मुलाकात भी चैराहे में हुयी थी। हमेशा की तरह उस दिन भी अद्वैत अपने देास्तों के साथ हर आने-जाने वाली लड़कियों का विश्लेषण करने में लगा था, तभी अपार्टमेण्ट की पार्किंग से रोहिणी अपनी प्लेजर से निकली, रोहिणी गाड़ी चलाते समय एकदम सीधा बैठा करती थी और उसकी कोहनी लगभग 45 डिग्री पर मुड़ी होती थी, ये देखकर अद्वैत ने दूर से बोला या तो ये यातायात के नियमों का कुछ ज्यादा ही पालन करती है या फिर इसने हाल ही में गाड़ी चलाना सीखा है। लेकिन कुछ ही पलों में अद्वैत की पहली संभावना खारिज हो गयी जब रोहिणी ने अपनी गाड़ी सीधे ले जाकर अद्वैत से टकरा दी उसके घुटनों में काफी चोट आ गयी। रोहिणी तुरन्त उतरकर कुछ ही सेकेण्ड में कई बार सारी बोल दी। अद्वैत को दर्द अधिक हो रहा था लेकिन उसकी शारीरिक चोटें सहने की क्षमता औसत से अधिक थी,इसलिए वो चिल्ला नहीं रहा था। जब उसने रोहिणी के चेहरे में ग्लानि की भावना और अपनी चोट का तुलनात्मक अध्ययन किया तो उसने चेाट से अधिक ग्लानि की भावना को पाया इसलिए उसने अपने दर्द को छुपाते हुये मजाकपूर्ण लहजे में रोहिणी से बोला, अरे! कोई बात नहीं आपने अच्छा ही किया हमे यहां बहुत दिनों से मोच थी मेरे फीजियोथेरेपिस्ट ने कहा था कि यहां पर जोर से झटका लगेगा तो ठीक हो जाएगी मैं तो खुद सोच रहा था कि इतनी जोर से झटका कैसे लगेगा ? पर आपने लगा दिया धन्यवाद।रोहिणी भी ऐसी प्रतिक्रिया देखकर थोड़ा हंस दी,अद्वैत ने ये बोल तो दिया पर उसकी तीव्र इच्छा थी कि जल्दी से रोहिणी यहां से जाए और वो अपनी चोट को बैठकर रगड़े। उस दिन रोहिणी चली गयी लेकिन अगले एक-दो दिन में जब उसने देखा कि अद्वैत की चाल में थोड़ी सी विकृति आ गयी है तब वो समझ गयी कि चोट में थोड़ी गंभीरता थी। धीरे-धीरे रोहिणी और अद्वैत में बात होना शुरू हो गयी।

रोहिणी की शक्ल काफी कुछ ‘मोनालिसा’ से मिलती थी इसलिए अद्वैत को लगता था कि रोहिणी को लियेानार्डा द विंची की पेंटिग्स पसंद करने का एक ये भी बड़ा कारण हो सकता था। मोनालिसा और रोहिणी में दो स्पष्ट समानताएं और विभिन्नताएं थीं। समानताएं ये थी कि उसकी शक्ल और मुस्कान उससे काफी मिलती थी । अंतर ये था कि मोनालिसा के नाक पर वो निशान नही था जो कि रोहिणी की नाक पर कर्णवेध संस्कार के समय बाली पहनाने से बना था और मोनालिसा एक व्यक्ति की काल्पनिक कृति थी जबकि रोहिणी प्रकृति की वास्तविक कृति थी।

बहरहाल। बुधवार की रात को चाय की दुकान में फैजल,सौरभ,विजय और अनुज की चर्चा जारी थी। फैजल वर्तमान सरकार का पुरजोर समर्थन कर रहा था लेकिन उसकी असली समस्या उसका दुकान न लगा पाना था जिला प्रशासन उन दिन सड़कों के किनारे लगने वाली दुकानों को  हटाने पर तुला हुआ था और वहां दुकान लगाने वालों से तीस हजार रूपये लेकर उन्हे नई दुकानों के लिए मिलने वाले जमीन के रजिस्ट्रेशन के लिए बाध्य किया जा रहा था। फैजल पैसे की व्यवस्था केा लेकर परेशान था। अद्वैत उनकी सारी बातें सुनकर सुबह गार्डेन चला गया फिर चैराहा और फिर शाम को रोहिणी के पास। रोहिणी ने अद्वैत से कहा कि जानती हो मैं कितना परेशान हूं इतनी कोशिशों के बाद भी मुझे पिकासो की पेंटिग वाला प्लेट सेट नहीं मिल पा रहा है। इसपर अद्वैत ने कहा हां! ये तो सचमुच परेशानी का बड़ा विषय है, फैजल तो बेवहज ही परेशान है। रोहिणी ने पूछा कौन फैजल ? अद्वैत ने जवाब दिया कोई नहीं। हम जल्द चलेंगे प्लेट सेट ढूंढने। और अद्वैत वहां से कई चैराहों में रूकते हुए चाय की दुकान चला गया। मौसम में थोड़ी-थोड़ी ठण्ड सी  आना शुरू हो रही थी। लोग चाय के गिलास को दोनों हाथों से पकड़कर सेंक से रहे थे। और अद्वैत अपना क्रम जारी रखते हुए रोहिणी के पास था।

उस शाम बरसात के बाद अद्वैत रोहिणी के साथ उसके अपार्टमेण्ट की छत पर टहल रहा था। अपार्टमेण्ट के निर्माण के बाद लोहे के एंगल को काटा नहीं गया था वैसे ही छोड़ दिया गया था जो कि छत पर जगह-जगह पिलर के बाहर सीधे उपर की ओर निकले हुए थे।छत पर बरसात का थोड़ा पानी जमा हुआ था। रोहिणी केप्री पहने हुये थी और अपनी सनफ्लावर बनी स्लीपर उतारकर टहल रही थी। उसका मानना था कि इस तरह टहलने से तलुओं में चमक आ जाती हैं। अद्वैत ने गार्डेन में ओस भरी घास में बिना स्लीपर के चलने से आंख की रोशनी बढ़ने वाली बात तो सुनी थी पर रोहिणी का ये तर्क उसके लिए नया था। रोहिणी के पैर बता रहे थे कि कम से कम पांच-छह दिन पहले उसने हेयर रीमूवल का प्रयोग किया था। दोनो टहलते-टहलते वाटर टैंक पर बैठ गये। अद्वैत को पूर्व दिशा में दो इंद्रधनुष दिखाई पड़े उसने रोहिणी को दिखाया और कहा दो इन्द्रधनुष देखकर जो मांगोगी मिल जाएगा। लेकिन रोहिणी ने बात का पूरा मोड ही चेंज कर दिया और बताया कि इन्द्रधनुष तो लाइट के रिफलेक्शन से बनतें हैं उसने अद्वैत को ‘लाइट रिफलेक्शन’ से ‘रमन इफेक्ट’ तक पूरी जानकारी दे डाली। और फिर बोला कि इसका लोगों की आकांक्षाओं से कोई संबध नहीं है। अद्वैत ने कहा अच्छा फिर भी तुम अगर कुछ मांगना चाहोगी तो क्या मांगोगी रोहिणी ने कहा ऐसा कुछ सोचा तो नहीं है अच्छा तुम ही बताओं तुम क्या मांगोगे अद्वैत ने कहा हम! हम तो पिकासेा की पेटिंग वाला प्लेट का सेट मांगेगे। रोहिणी थोड़ा सा मुस्कुराई और बोली कल हम पूरा दिन साथ रहेगें और प्लेट का सेट भी ढूंढेगे, अद्वैत ने कहा सुबह थोड़ा जल्दी आ जाना नहीं तो हम दोस्तों में फंस जाते हैं और उनको भी हम न नही कर पाते।

फिर भी अगले दिन रोहिणी को आते-आते लगभग साढ़े आठ बज गये वो सो कर थोड़ा देर में उठती थी। जल्दबाजी में उसने ठीक से मुंह भी नहीं धोया था ये बात उसकी आंखों के किनारे बयां कर रहे थे। उसकी दोनो पलकों में पानी कुछ बेहद छोटी-छोटी बूंदे रह गयीं थीं जो सूर्य के प्रकाश में सतरंगी सी चमक रहीं थीं। अद्वैत ने पहली बार सुबह के समय दो इंद्रधुनष देखे थे। अद्वैत ने रोहिणी से बोला एक बार चेहरा फिर से धोलो रोहिणी पूरी मेकअप किट अपने साथ रहती थी उसने मुंह धोया और सन्स क्रीम चेहरे पर लगाई। अद्वैत ने कहा अब ठीक लग रही हो।

अद्वैत को पता था कि आज पूरा दिन रोहिणी के साथ बीतने वाला है ऐसी स्थिती में ज्यादातर लोग सिनेमाघरों का ही रूख करतें है पर अद्वैत रोहिणी के साथ प्लैनीटोरियम जाता था क्यों कि यहां पर सारा वातावरण तो सिनेमाघर जैसा ही होता है बस एक अंतर ये होता है कि सिनेमाघर में लोगों के सिर और दृष्टि सामने होतें हैं जबकि प्लैनिटोरियम में ऊपर। प्लेनिटोरियम के बाद कुछ देर मार्केट में प्लेट से ढूंढे़ गये फिर अद्वैत रोहिणी को लेकर सीधा राजीव के रेलवे काॅलोनी वाले क्वाटर पर चला गया। उसके क्वाटर के बाहर पपीते का लगभग दस फीट का एक पेड़ था जिसको आधार बनाकर राजीव अपने बागवानी के शौक को बयां किया करता था। अद्वैत के आने पर राजीव बाहर आया। राजीव ने अद्वैत के साथ रोहिणी को देखा और समझ गया कि अब उसकेा क्या करना होगा। उसने अद्वैत से कहा कि आज हमें फील्ड वर्क में जाना है हम देर शाम तक आएंगे तुम लोग आराम से रहो अभी मैने कुछ खाने का तो बनाया नही है फ्रिज के बगल वाली अलमारी में मैगी के नूडल्स रखें हैं चाहो तो उनका उपयोग कर सकते हो। अद्वैत ने कहा ठीक है।

अब रोहिणी और अद्वैत अकेले उस क्वाटर में थे। दोनों ने मैगी के नूडल्स खाये और एक डबल बेड पर बैठकर टी0वी0 देखने लगे। डबल बेड के एक ओर पीठ टिकाने की जगह बनी थी। रोहिणी उसी पर पीठ टिकाकर बैठ गयी, उसने अपने बांये पैर को घुटने से ऊपर की ओर मोड़ लिया था और बांया पैर सीधा रखा, उसके बांये पैर पर अद्वैत सिर रखकर लेट गया और रिमोट लेकर चैनल बदलने लगा। रोहिणी का जूम देखने का मन था लेकिन अद्वैत नेट0जीओ0 देखने लगा, पर थोड़ी ही देर में अद्वैत को नींद सी आने लगी, उसकी आधी खुली आंखों को रोहिणी ने अपनी बांयी हथेली से पूरा बन्द कर दिया और दाहिने हाथ से रिमोट लेकर फिर से जूम चैनल लगा दिया। अद्वैत गहरी नींद में सो गया था। इस बीच उसकी आंख एक दो बार तब खुली जब रोहिणी की जेब में रखे मोबाइल में वर्बरेशन होता पर इस बीच न तो रोहिणी ने एक बार भी पैर हिलाया और न ही कोई फोन रिसीव किया। उसकी बांयी हथेली अद्वैत की आंख से थेाड़ा खिसकर नाक के पास आ गयी थी उसमें अभी भी उस सन्स क्रीम की महक आ रही थी जिसे सुबह रोहिणी ने चेहरे पर लगाया था। लगभग साढ़े पांच बचे अद्वैत की नींद खुली वो बहुत दिनों बाद इतनी देर तक आराम से सोया था तब उसको लगा कि अच्छी नींद के लिए अच्छे बेड के सिवा कुछ और भी होना चाहिये। इतनी देर तक एक ही अवस्था में रहने के कारण रोहिणी के पैर में झुनझुनी सी होने लगी थी। जब वो पैर को झटककर दस बारह कदम कमरे में टहली तब वो सामान्य अवस्था में आ पायी।

अद्वैत ने राजीव को फोन करके बता दिया वो जा रहा है, ताले की चाभी दरवाजे के उपर वेंटीलेटर पर रखी है ले लेना। राजीव ने कहा ठीक है। रोहिणी ने अपनी प्लेजर स्टार्ट की और अद्वैत पीछे बैठ गया, थोड़ा आगे जाने पर अद्वैत ने रोहिणी से बोला कि इतना सीधे बैठकर गाड़ी मत चलाया करो अपनी रीढ़ की हड्डी को थोड़ा तो आराम दो, ये अलग बात है कि उसके इस आराम में अद्वैत का भी कुछ स्वार्थ छुपा था।रोहिणी अद्वैत को चैराहे पर छोड़ती हुयी घर चली गयी।

उस दिन चाय की दुकान का महौल थोड़ा अलग फैजल की बातों में सरकार का समर्थन कम अपनी समस्याएं ज्यादा थीं फैजल अभी तक तीस हजार रूपये का इंतजाम नहीं कर पाया था और उसको लग रहा था कि वो कर भी नहीं पाएगा क्यों कि उसके दोस्त भी उसी जैसे थे और ब्याज देने की स्थिति में वो था नहीं। अद्वैत भी अपने स्त्रोतों से उतना ही धन अर्जित कर पाता था जिससे उसका पूरा दिन कुशलता से निकल जाए लेकिन वो ये जानता था कि फैजल के लिए तीस हजार रूपये का इंतजाम वो कर सकता है। उसने फैजल से बोेला हमसे पैसे ले लो, फैजल ने अद्वैत से पूछा कितना ब्याज लोेगे ? अद्वैत ने पलटकर बोला लगता है तुमको ब्याज देने की आदत पड़ गयी है, ऐसे ही ले लेना। फैजल ने फिर पूछा अच्छा कब तक लौटाना होगा? अद्वैत ने जवाब दिया जब देश में बह रही विकास की गंगा का पानी तुम्हारे घर आ जाए तब लौटा देना। बातों-बातेां में सुबह होने लगी और अद्वैत गार्डेन चला गया, और फिर चौराहे पर।

अद्वैत ने चैराहे पर अपने दोस्तों के समूह में फैजल के मामले की चर्चा की और तीस हजार रूपये जुटा लिये। पैसे जेब में रखे और शाम को रोहिणी के पास गया। रोहिणी उस दिन अद्वैत से कुछ गंभीर बात करना चाहती थी इसीलिए अपार्टमेंट की छत के बजाए कुछ किलोमीटर दूर नदी के किनारे पत्थर की बनी कुछ सीढ़ीयों पर गई और कुछ देर बैठने के बाद अद्वैत से बोली अब हमें कुछ सीरियस होना चाहिये। अद्वैत ने पूछा मतलब ? वैसे मतलब तुम समझ रहे हो, फिर भी हम समझाते हैं। देखो हमें तुम्हारी जीवनशैली से कोई शिकायत नहीं है, एक तरह से वो हमे अच्छी ही लगती है। लेकिन तुम ये सब करते क्यों हो ? अद्वैत ने जवाब दिया। दरअसल तुम्हारे पापा सुबह गार्डेन में जिस पाल्यूशन की बात करते हैं ना उससे कहीं ज्यादा पाल्यूशन हमारे वातावरण में है शायद तुम्हारे पापा महसूस भी करतें हों पर वो पाल्यूशन के लिए जिन कारकों को जिम्मेदार बतातें हैं वास्तव में उस पाॅल्यूशन का वो एक भी कारक नही है। हमारे यहां हिंसा को अपराध की संज्ञा दी गयी है हर अपराध के लिए धाराएं और सजा कानून में है लेकिन ये जानने की रूचि किसी को नहीं है कि ऐसा क्यों किया गया। मेरे सामने जबभी ऐसी स्थिति पैदा हुयी कि हमें पाप और अपराध में किसी एक को चुनना पड़े तो हम अपराध ही को चुनते हैं क्यों कि अपराध की परिभाषा बदलती रहती है पर पाप की परिभाषा शाश्वत है। रोहिणी ने पूछा कि तुम्हारा शादी के बारे में क्या विचार है?

अद्वैत ने कहा बड़ा स्पष्ट विचार है हम शादी नहीं करना चाहते हैं। रोहिणी ने कहा कि लेकिन हम करना चाहते हैं। अद्वैत ने कहा ये तो खुशी की बात है करो। रोहिणी ने कहा लेकिन एक समस्या है? अद्वैत ने कहा क्या घर वालों से ? रोहिणी बोली नहीं वो मेरे किसी भी निर्णय में हस्तक्षेप नहीं करते। अद्वैत पूछा तब क्या बात है? रोहिणी बोली समस्या ये है कि हम तुमसे शादी करना चाहते हैं। रोहिणी ने लगभग आर्डर देते हुये कहा कि मैं तुम्हारे साथ इतने दिनों से हूं इसलिए तुम्हे मुझसे शादी करना चाहिये और मुझे इसी वातावरण में रहना है इसलिए उम्मीद है कि तुम अपने जीवन में थेाड़ा परिवर्तन लाओ। अद्वैत ने पूछा जैसे? रोहिणी ने अपने  पर्स से एक पेन और एक पेज निकाला उस पर उसने 1,2,3 करते हुये 6 प्वांइट बनाये और सबमें एक-एक वाक्य लिखा। वो डी, आर और एफ बड़े ही कलात्मक ढंग से लिखा करती थी जो कि उसमें से अलग दिख रहे थे। उस पेज को लेने के बाद अद्वैत को सोशियेालाॅजी की वो परिभाषा याद आ गयी जिसमें विवाह को एक इन्स्टीट्यूशन कहा गया है और उसको लग रहा था कि किसी ने उसे इस इन्स्टीट्यूशन में प्रवेश दिलाने के लिए इंट्रेस एक्जाम का पेपर आउट करके दे दिया हो। कुलमिलाकर उस पेज में लिखी गयी बातें एक स्थाई जाॅब और आर्गनाइज्ड लाइफ की ओर संकेत कर रही थी।

अद्वैत वो पेज लिया और अपने मित्र उत्कर्ष के घर गया। अद्वैत जल्दी लोगों के घर नही जाता था ज्यादातर लोगों से सड़क पर ही मिला करता था। अद्वैत ने उत्कर्ष को घर से बुलाया और बाहर सड़क पर टहलते हुये पहले तो उसका हाल-चाल लिया फिर देश के राजनैतिक और सामाजिक पहलूओं पर चर्चा करने लगा। ऐसा वो कभी करता नहीं था इसलिए उत्कर्ष को लगने लगा कि अद्वैत के आने की वजह कुछ और है पर वो बातें कुछ और कर रहा है। उत्कर्ष ने उसकी बातों को रोकते हुए पूछा यार तुम आज इतने दिन बाद मेरे घर देश के चुनाव का ओपीनियन पोल बनवाने आये हो ?सच-सच बताओ क्या बात है ? अद्वैत ने धीरे से कहा कि यार एक ठीक-ठाक जाब चाहिये।

अद्वैत ने ये वाक्य इतने धीमे स्वर में बोला था कि उत्कर्ष ने अगला कोई सवाल करना उचित नहीं समझा। दरअसल उत्कर्ष सरकारी तंत्र में लोगों से पैसा लेकर नौकरी दिलवाने का काम करता था और अद्वैत इसके काम को अच्छी नजरों से नही देखता था इसलिये उत्कर्ष अद्वैत को ईमानदार मानता था और उसका सम्मान भी करता था। उत्कर्ष ने अद्वैत से पूछा अभी कुछ पैसे रखे हो उसने कहा हां। उत्कर्ष अपने घर से कुछ कि0मी0 दूर एक पुरानी सी पीले रंग की बिल्डिंग में ले गया। उस काॅलोनी जैसी बिल्डिंग में टूटी-फूटी पुराने स्थापत्य जैसी छोटी-छोटी सीढि़यां थीं और जहां-जहां सीढि़यों मुड़ती थीं उन किनारों में पान और गुटखे के छींटे फैले हुये थे। बरामदे के बाद दायीं ओर एक सीलन भरे कमरे में कुछ लकड़ी के फर्नीचर रखे हुये थे एक बड़ी सी मेज के सामने बैठे एक आदमी से उत्कर्ष ने बोला और नमस्कार महराज जवाब आया और उत्कर्ष ठीक हो,उत्कर्ष ने बोला आपके रहते हमको क्या हो सकता है ? उसने बोला और बताओ कैसे आना हुआ ? बस ऐसे ही आपका दर्शन करने आ गये।

फिर उत्कर्ष ने बोला वो जो क्लर्क ग्रेड वाला 267 पदों का विज्ञापन आया था उसी के लिए इन्हे लाएं हैं। उस आदमी ने बोला उसका तो रिजल्ट भी आने वाला है उसकी मेरिट लिस्ट मेरी दराज में रखी है और इन्होने तो आवेदन भी नहीं किया था बताओ इसमें हम क्या कर सकतें हैं। उत्कर्ष ने कहा अरे आप चाहें तो क्या नहीं हो सकता। उसने कहा मेरे नहीं अब तो जो हो सकता है इन्ही के चाहने से हो सकता है उसने अद्वैत की ओर इशारा करते हुये कहा। आदमी ने बोला अभी तीन लाख रूपये दे दो तो कुछ सोचा जा सकता है। अद्वैत ने कहा कि मतलब आप हमें मेरिट में आये किसी व्यक्ति की जगह नौकरी देने जा रहें हैं ? अद्वैत बोला ये तो ठीक नहीं है। आदमी ने उत्कर्ष से कहा किसको ले आये हो यार ये तो शिक्षा देने लगा। आदमी ने कहा कि देखो अपना और मेरा समय खराब मत करो सही में काम कराना चाहते हो तो अभी पैसा दो नही तो जाओ। अद्वैत की जेब में रूउफ के लिए इकट्ठा किये तीस हजार रूपये थे और उसकी दुकान रजिस्ट्रेशन एप्लीकेशन की एक कापी।

अद्वैत बहुत असमंजस में फंस गया एक तरफ तो उसके सामने फैजल का एप्लीकेशन था और दूसरी तरफ रोहिणी। फैजल का एप्लीकेशन तो ब्लैक एण्ड वाइट था लेकिन रोहिणी की आंखो में अद्वैत ने इंद्रधनुष देखा था। अद्वैत के ‘पाप’ और ‘अपराध’ के सिद्धान्त डगमगाने लगे उसे समझ में नही आ रहा था क्या किया जाए? उसको लग रहा था कि दिनरात मेहनत करके प्रतियोगिता में सफल हुये अभ्यर्थी की जगह बेईमानी से लेने से बड़ा पाप क्या होगा ? उत्कर्ष अद्वैत को बहुत दिनों से जानता था अतः उसकी इस उलझन को वो अच्छी तरह समझ रहा था इसीलिए उसने बोला तुम बाहर बैठो हम बात करते हैं। उत्कर्ष समाज में बहुत रहा था और लोगों को अच्छी तरह समझता था। अद्वैत ने जिस धीमे स्वर में उत्कर्ष से जाॅब के लिए बोला था उससे वो अद्वैत के लिए जाब की उपयोगिता और आवश्यकता का आकलन लगा चुका था, लेकिन उत्कर्ष ये भी जानता था कि अद्वैत कभी भी किसी और के स्थान को बेईमानी से कब्जाते हुये पद नहीं लेगा। अब उत्कर्ष बाहर आया और अद्वैत को बच्चेां की तरह समझाने लगा कि जरूरी थोड़ी है कि सारे 267 मेरिट वाले जाॅब करें ही इसमें कुछ छोड़ देते हैं उसी में तुम्हारा किया जाएगा,हमने साफ तौर पर कह दिया है कि किसी और की जगह अद्वैत को न लिया जाए। अद्वैत भी इतना मूर्ख नहीं था कि वो उत्कर्ष कि इस बात की सच्चाई को न समझता हो पर उसके पास भी कोई अन्य विकल्प नहीं था। इसलिए उसने उस समय मूर्ख और बच्चा बनना ही श्रेयस्कर समझा और अपनी जेब से तीस हजार रूपये निकालकर उत्कर्ष को दे दिये। उत्कर्ष ने बाकी पैसा अद्वैत से बाद में अदा करने की शर्त पर लगा दिया।

अब अद्वैत के पास एक जाॅब थी और रोहिणी उसकी पत्नी थी। अद्वैत आफिस जाना शुरू किया और अब उसका समय आफिस, घर और कभी-कभी गार्डेन में बीता करता था। चाय की दुकान और चैराहे उसके शेड्यूल से नदारद हो गये। उसकी दिनचर्या में भारी परिवर्तन आ गया था लेकिन उसका स्वभाव अभी वैसा ही था। धीरे-धीरे उसे आफिस में अपने कालेज जैसी परिस्थितियां नजर आने लगीं। वो पढ़ाई की तरह अपना काम भी ईमानदारी से किया करता था पर प्रतिफल में उसे अक्सर बेवजह उच्च पदस्थ अधिकारियों की अभद्र भाषा ही सुनाई पड़ती थी, इसका एक कारण आफिसेस में अवसाद का अवरोही क्रम में निकलना भी होता था। वो जरा भी इनको सुनने का आदी नहीं था पर रोहिणी को सेाचकर सुन लिया करता था। पर उस दिन एक उच्च अधिकारी ने भाषाई मर्यादाओं को तोड़ते हुये अद्वैत से कुछ ऐसा बोल दिया कि उसका मस्तिष्क किसी के बारे में सोचने की स्थिती में नहीं रह गया और अद्वैत ने उस अधिकारी कालर पकड़कर उसे बुरी तरह से पीटना शुरू कर दिया।

पूरा आफिस स्तब्ध रह गया और मामले में विभागीय जांच कराने के निर्णय के साथ अद्वैत को 15 दिनों के लिये निलंबित कर दिया गया। जब 16 वें दिन अद्वैत आफिस पंहुचा तो एक कमेटी के सामने उसे प्रस्तुत होना था वहां पर उसके सामने एक नान ज्युडिशयल स्टांप रखा गया जिसमें लिखा था ‘‘मैं शपथकर्ता अद्वैत पुत्र वीरभद्र निवासी 16 मयूर विहार लखनऊ शपथ लेता हूं यह कि मैने अपने उच्च पदाधिकारी के साथ हिंसा व अभद्रतापूर्ण व्यहवार किया... मैं अपने अपराध को स्वीकार करता हूं तथा क्षमाप्रार्थी हूं... यदि मुझसे भविष्य में इस प्रकार की कोई गतिविधि होती है तो मुझे बिना सूचित किये पदमुक्त कर दिया जाए’’ पर हस्ताक्षर करने को कहा गया।

अद्वैत को पहले एक इसी तरह के स्टांप पर कालेज में हस्ताक्षर करने को कहा गया था जिसको उसने बेहिचक फाड़कर फेंक दिया था, वो आज भी यही करना चाहता था पर वो जानता था कि अब वो ऐसा नहीं कर पाएगा। पूरा पैनल उसे उस पत्र में हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य कर रहा था। अद्वैत ने उसमें हस्ताक्षर कर दिया, उस दिन हस्ताक्षर करते समय अद्वैत का ‘डी’ राहिणी द्वारा बनाये गये ‘डी’ जैसा हो गया था। अद्वैत को हस्ताक्षर करने के बाद ऐसा लग रहा था जैसे उससे सोसाइट लेटर पर जबरदस्ती साइन कराया गया हो। वो बहुत निराश सा हो गया उस दिन आफिस में बिना कोई काम किये नदी के उसी किनारे पर जाकर बैठ गया जहां पर रोहिणी ने उससे विवाह करने की बात की थी।

अद्वैत उस दिन देर शाम घर गया, उसे रात में रोहिणी के साथ एक पार्टी में जाना था। प्लेजर की तरह कार भी रोहिणी ही चलाया करती थी अद्वैत बगल में बैठता था। पार्टी से लौटते-लौटते देर रात हो गयी थी। लगभग सभी दुकाने बंद थीं सिवाय उस चाय कि दुकान के जहां पहले अद्वैत रात गुजारा करता था। अद्वैत उस दुकान को देखकर बगल वाली सीट से उठकर अचानक गाड़ी का ब्रेक लगा दिया। स्टेरिंग रोहिणी के हाथ में थी तेज गति होने के कारण गाड़ी थोड़ी अनियंत्रित होकर रूकी। अद्वैत दरवाजा खोलकर चाय की दुकान के सामने उतर गया। रोहिणी भी उतरकर पूछी क्या हुआ? अद्वैत रोहिणी के पास जाकर बोला हम गलत नहीं है पर तुम्हारे साथ हम बहुत गलत करने जा रहें हैं। हमको माफ कर दो। इस वातावरण में बहुत पाॅल्यूशन है हम सांस नहीं ले पा रहें हैं। हमारे रिश्ते शादी से पहले ही अच्छे थे।

रोहिणी ने अपनी हथेली से अद्वैत की आंखे बंद कर दीं और उसे सुनती रही। अद्वैत बोल रहा था कि तुम जानती हो जिस दिन तुमने मुझे वो 6 प्वाइंट लिखकर दिये थे उस दिन पहले हमको बहुत हंसी आयी थी लेकिन बाद में बहुत शर्म, दरअसल तुमने उस दिन जो लिखकर दिया था वेा लोगों की ‘बेसिक नीड्स’ थी, और जब बेसिक नीड्स आकांक्षाओं में तब्दील होने लगे तब हमें ये गंभीरता से सोचना चाहिये कि हम किस वातावरण में रह रहें हैं ? फिर वो बार-बार कहने लगा या तो एक दिन हम सबको मार देंगें या सब हमें मार देंगें,प्लीज हमे छोड़ दो हम बहुत परेशान हैं। रोहिणी कुछ समझाने के लिए अपनी हथेली अद्वैत की आंख से हटाकर कुछ बोलने ही वाली थी कि उसने देखा कि उसकी हथेलियां गीली हो गयीं थीं, उसके बाद रोहिणी की दूसरी हथेली खुद ही अपनी आंखों में चली गयी और वो भी गीली हो चुकी थी । फिर उसने कुछ नहीं बोला और गाड़ी स्टार्ट करके चली गयी। गाड़ी में अद्वैत का वो वाला मोबाइल छूट गया था जिस पर वो मैसेज टाइप किया करता था। उसने उसके मैसेज देखने के लिए मैसेज का सेंड बाॅक्स देखा तो पाया कि सारे सेंड मैसेजेस 3 और 4 डिजिट पर भेजे गये थेे जो किसी के नंबर ही नहीं थे और सभी में लिखा था ‘‘ टू होम इट में कन्र्सन’’।

सक्षम द्विवेदी
रिसर्च आन इंडियन डायस्पारा
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा, महाराष्ट्र।
पता- 20 नया कटरा दिलकुशा पार्क, इलाहाबाद, पिन 211002।
मो0नं0 7588107164

No comments: