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27.8.16

कार्रवाई नहीं मामला समझ लेते हैं शिवराज के अधिकारी...



1 अवैध डेयरी 8 महीने में 10 से ज्यादा बार कम्प्लेन फिर भी अधिकारी कह रहे "समझा दिया है अब कुछ हो तो बताइयेगा"...जी हाँ काम करने का यह तरीका हैं मध्यप्रदेश सीएम हेल्पलाइन द्वारा भेजे जाने वाले "लेवल अधिकारीयों" का। दरअसल शिवराज के राज में यह अधिकारी कार्रवाई से ज्यादा मामला समझने में विश्वास करते हैं। कम्प्लेन के वक्त शिकायत कर्ता को बिना बताये कम्प्लेन क्लोज कर दी जाती है। बाद में पता चलता है की अधिकारी द्वारा समस्या का समाधान कर दिया गया है और यह समाधान कार्रवाई नहीं बल्कि आपसी समझाइश यानी मामला समझ लेना होता है।


केस जबलपुर शहर का है जिसमें रहवासी/पोर्श कॉलोनी में लम्बे समय से चली आ रही अवैध डेयरी की शिकायत पर करीब 8 महीनों से अधिकारी मामले को समझ ही रहे हैं। शिकायतकर्ता के पास डेयरी की गन्दगी और बरती जाने वाली लापरवाही का सबूत होने पर भी उससे कोई सम्पर्क नहीं किया गया। और जब डेयरी संचालक ने मौका देख जानवर हटाकर सफाई करवा दी तब यह होनहार अधिकारी सर्वे के नाम पर पहुँच गये। और शिकायतकर्ता से कहने लगे अब नहीं करेगा गन्दगी हमने समझा दिया है। अगर फिर कुछ हो तो बताइयेगा। इतना ही नहीं जो सबूत शिकायतकर्ता के पास थे उनको पुराना बताकर कम्प्लेन क्लोज करने दबाव देने लगे। अब सवाल यह कि माना वर्तमान समय में सबूत पुराने हो गये लेकिन जिस वक्त पहली कम्प्लेन हुई थी उस वक्त तो सबूत पुराने नहीं थे? फिर बिना शिकायतकर्ता को बताये उसकी शिकायत बन्द कैसे हुई थी?

नियमानुसार शिकायत मिलते ही अधिकारी को स्पॉट पर पहुँच चालानी कार्रवाई करनी थी। लेकिन इससे व्यक्तिगत फायदा नहीं मिलता और भविष्य में भी होने वाली कमाई का जरिया खत्म हो जाता। इतना ही नहीं हेल्पलाइन में बैठे अटेंडर ने जब अधिकारी को चालानी कार्रवाई करने बोला तो उसने उसे झाड़ते हुये कहा कि आप मत बताइये मुझे क्या करना है। यह मैं तय करुंगा मुझे चालान काटना है या नहीं। यह तो 1 किस्सा है ऐसे न जाने कितनी शिकायतें हैं जिनका निवारण इसी तरह आपस में समझकर कर लिया जाता होगा। इस व्यवस्था को देख एक ही कहावत याद आती है "अंधेर नगरी चौपट राजा"।

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