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15.8.16

भारत की वर्तमान स्थिति (कविता)

मिली हमें कैसी आज़ादी दुःखों की भरमार है,

जिए तो कैसे जियें जीना यहाँ दुश्वार है

जब भारत था सोने की चिड़िया लूटा था अंग्रेजो ने

चन्द रूपये की खातिर किया आज देश खोखला कुछ रिश्वत खोरी कीड़ों ने

शायद अब ना रहा इन्हें वतन से प्यार है

मिली हमें कैसी आज़ादी दुःखों की भरमार है....




मार्कशीट, डिग्री अब पैसों से बट रही,

योग्य बनने से विद्यार्थी की ललक हट रही,

आने वाला अब्दुल कलाम उदास है,

अनपढ़ भी अब अतरौलिया बोर्ड से पास है,

शिक्षा में सर्वाधिक भ्रष्टाचार है,

वेकेंसी है एक की आवेदक की संख्या हज़ार है

मिली हमें कैसी आज़ादी दुःखों की भरमार है....



दहेज़ पीड़ा से बेटियों की समाज में साँस घुट रही,

चौराहे पर दिनदहाड़े खुलेआम आबरू लुट रही,

इंसाफ मिलेगा- इंसाफ मिलेगा खाकी रट रट रही,

कैसे दिलाएगी इंसाफ वो इन हादसों में खुद दागदार है

मिली हमें कैसी आज़ादी दुःखों की भरमार है....



दाम दाल, तेल के आसमान को चूम रहे,

नेता मद-मस्त होकर बारों में अब  झूम रहे,

लगा लाल-नीली बत्ती अपने रौब में मशगूल रहे,

क्या इन्हें सुप्रीम कोर्ट और संविधान से अधिकार है,

मिली हमें कैसी आज़ादी दुःखों की भरमार है....



ममता और इंसानियत ना जाने अब कहाँ डोल रही,

क़त्ल-ए-आम मत करो मेरा कन्या भ्रूण में बोल रही,

पक्षपात बेटे की चाहत क्या यही सामाजिक सरोकार है,

आज़ादी के बाद हम हैं आज़ाद ये सब कहना बेकार है

मिली हमें कैसी आज़ादी दुःखों की भरमार है....



आम आदमी रोज लुट रहा,

चोर-चक्कों के पास धन जुट रहा,

शर्मिंदगी का तालाब अब पट रहा,

घटिनायों का षड़यंत्र बना अब राजनीती का आधार है,

मिली हमें कैसी आज़ादी दुःखों की भरमार है....



नदियों में अब गन्दगी डल रही,

हरे पेड़ों पर कुल्हाड़ी चल रही,

पर्यावरण की अब धरा हल रही,

ग्लोबल वार्मिंग से ओजोन परत गल रही,

एक दिन हो भयंकर अवश्य तबाही ये स्वप्न होने वाला अब साकार है,

मिली हमें कैसी आज़ादी दुःखों की भरमार है....



युवा शक्ति हैं राष्ट्र शक्ति,

देश-समाज  के प्रति हो जाओ समर्पित

इससे बड़ी नहीं कोई भक्ति

युवाओं से "मुनेश कुमार अलीगढ़ी" की यही पुकार है

मिली हमें कैसी आज़ादी दुःखों की भरमार है....

                               
कवि मुनेश कुमार "अलीगढ़ी"
(मडराक वाले)
मो.नं- 9808282183
muneshkumar201301@gmail.com

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