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9.8.16

दलित और गाय की चिंता पर उलझी भाजपा

प्रभुनाथ शुक्ल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गोरक्षा पर मन के बजाय दिल की बात की है। उन्होंने दलित उत्पीड़न और गोरक्षा पर अब तक का सबसे बड़ा बयान दिया। गोरक्षा से जुड़ी संस्थाओं और हिमायतियों को इस तरह की बात से गहरा जख्म हुआ। जिसकी शायद कभी उन्होंने कल्पना तक नहीं की होगी। बयान पर पर तीखी टिप्पणियां होनी स्वाभाविक थी और वह हुईं भी। लेकिन इस बयान के माध्यम से पीएम ने दलितों के गुस्से को डैमेज कंटोल करने का काम किया है। यह उनकी चिंता के साथ साथ राजनीतिक रणनीति का हिस्सा भी है। व्यवस्था और सरकार को पर्दे में चलाने के बजाय उसे पारदर्शी रखना अधिक बेहतर है वरना फोड़ा बन जाता है। निश्चित तौर पर गोरक्षा होनी चाहिए। गाय हमारी पूज्यनीया है। हिंदूधर्म में उसे मां का स्थान मिला है। गाय हमारी आस्था की प्रतीक है। यह हमारी धार्मिक आस्था से जुड़ी है।


लेकिन गाय हमारा राजनतिक धर्म नहीं है। उस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। राजनीति और धर्म दो अलग रास्ते हैं। धर्म से राजनीति को अगल रखना होगा। लेकिन राजनीति का धर्म हमारे उतना ही जरुरी है जितनी की राजनीति। लेकिन दुःख इस बात का है कि हमारी आस्था की प्रतीक गाय आज राजनीति का विषय हो चली है। हम गोरक्षा के नाम पर समाज में घृणा फैलाने की बात करें। समाज को बांटने की बात करें। अपने ही भाईयों को गोकशी के शक में खुले आम सड़कों पर पीटें। कथित गोमांस के भ्रम में बिहासड़ा में किसी को पीटपीट कर मार दिया जाए। इसकी इजाजत क्या हमारा हिंदू धर्म देता है। हम तो अहिंसा में विश्वास रखते हैं। हमारे लिए हिंसा सबसे बुरा कर्म है। अहिंसा हमारा परम धर्म है। फिर गाय ही क्यों हम तो समग्र जीवों पर दया की बात करते हैं। फिर गाय को आगे कर इंसानों को पीटना कहां का न्याय है। प्रधानमंत्री जी को देश भर में गोरक्षा के नाम पर हुई घटनाएं खल रही है। उनके मन में यह बात कुरेद रही थी कि गुजरात के जिस विकास माडल और उसकी उपलब्धियों को सामाने रख कर उन्होंने ने दिल्ली की सत्ता हासिल की। जिस गुजरात ने उन्हें शीर्ष पर पहुंचाया।

लेकिन भाजपा के सत्ता में आने के बाद जिस तरह के गोरक्षा की आड़ में अल्पसंख्यकों और दलितों को निशाने पर रखा गया इससे पीएम मोदी और उनकी छबि को गहरा आघात लगा। आज वहीं गुजरात दलित उत्पीड़न, पटेल आंदोलन और बालकुपोषण के रुप में सामने आया है। यह उनके लिए सबसे अधिक चुनौती थी। यह घटना उन्हें अंदर से हिलाकर रख दिया। जिसकी पीड़ा दिल्ली के टाउनहाल से बाहर आयी। जिसकी प्रतिक्रिया में उन्होंने कहा कि ‘‘देश में गोरक्षा के नाम कुछ लोग अपनी दुकानें चला रहे हैं। कुछ लोग रात में गैर कानूनी काम करते हैं और दिन में गोरक्षक बन जाते हैं। 70 से 80 फीसदी लोग नकली गोसेवक हैं। ज्यादातर गाय कत्ल की वजह से नहीं प्लास्टिक खाने से मरती हैं। अगर वे असल गोरक्षक हैं तो गायों को प्लास्टिक खाना बंद करवा दें। इस बात पर काफी आलोचना झेलने के बाद भी हैदराबाद में उसे दोबारा दोहराया।

लोगों को इस तरह के नकली गोसेवकों से आगाह रहने की बात की। दलितों के हमले से मोदी जी इतने व्यथित हैं कि उन्होंने हैदराबाद में पार्टी कार्यकताओं को संबोधित करते हुए भावुक हो गए। बोले ‘‘मुझ पर हमला करो, मुझे गोली मार दो, लेकिन दलित भाईयों पर हमले बंद करो‘‘ इसका मतलब आप क्या समझते है‘‘। इससे यह साफ जाहिर होता है कि मोदी हाल में हुई इस तरह की घटनाओं से बेहद तकलीफ में हैं। प्रतिपक्ष को सरकार को घेरने का मौका मिल गया है। उनकी पीड़ा स्वाभावितक है। हलांकि इस बयान पर विरोधी लालू यादव, शीला दीक्षित और मायवाती ने घेरा भी। लालू ने यहां तक कह दिया कि अब मोदी को मालूम हो गया है कि गाय दूध देती है वोट नहीं। सोशलमीडिया पर मोदी और भाजपा समर्थकों ने यहां तक कह डाला कि अब 2019 में उन्हें हिमालय में जाना पड़ेगा। आतंरिक तौर पर पीएम का यह बयान सांगठनिक स्तर से बड़ा बयान माना जा रहा है। क्योंकि भाजपा सरकार को हिंदू विचारधारा का पोषक दल कहा जाता है। हिंदूमहासभा जैसे संगठन ने भी इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी। लेकिन सुकून की बात यह है कि अगर यह बयान वामपंथ, कांग्रेस या किसी गैर भाजपाई दलों की तरफ से आया होता तो तूफान मच जाता। एक बार फिर हमारी गाय राजनीतिक हिंसा के घरे में होती और उस पर तीखी राजनीति होती।

पीएम के बयान पर शोर मचाने वालों को राजस्थान के हिंगोनिया गोशाला की जमींनी हकीकत क्यों नहीं दिखती। जहां अव्यवस्था और लापरवाही की वजह से दो हप्तों में तकरीबन 500 गायों के मरने की बात सामने आयी है। इसके पहले भी यहां लापरवाही की वजह से गायों की मौत हो चुकी है। इसका राज भी नहीं खुलता लेकिन भला हो एक एनजीओ का जिसने इस सरकारी गोशाला की जमींनी सच्चाई सामने लाई। इस शाला में करीब 8000 गायें हैं। इसका सालाना बजट 20 करोड़ रुपये है। जरा सोचिए जब सरकारी गोशालाओं की यह हालत है फिर गैर सहायता प्राप्त गोशालाओं की क्या स्थिति होगी। कर्मचारियों की हड़ताल की वजह से गायें कीचड़ और गोबर में फंसी रहीं। भूख से उनकी मौत हो गयी। राजस्थान हाईकोर्ट ने जब तल्ख रुख अख्तियार किया तो वसुंधरा सरकार की नींद खुली। इसके लिए कौन जिम्मेदार है। गोरक्षकों ने इस पर क्यों नहीं बवाल काटा।

हिंगोनिया गोशाला को सियासी मसला क्यों नहीं बनाया। क्योंकि वहां भाजपा सरकार है। गोरक्षा की हिमायती इस लापरवाही से उसकी गोरक्षा की पोल खुल गयी। अब भला अपनी ही सरकार पर नकली गोरक्षक जो गाय पर राजनीति करते हैं वे हल्ला कैसे बोलते। सवाल यह है कि क्या दलित और अल्पसंख्यक गाय नहीं पालते। उनके घरों में गाय नहीं पलती। वे गाय का दूध नहीं पीते। यह सब बातें बेबुनियाद हैं राजस्थान के गंगानगर और दूसरे जिलों में काफी तादात में गैर हिंदू बिरादरी के लोग गाय पालते हैं। देश में बैलों से खेती की प्रथा बंद होने से लाखों की संख्या में गोवंश किसानों के लिए समस्या बन गए हैं। किसानों की यह समस्या नकली गोरक्षकों को क्यों नहीं दिखती। लाखों की संख्या में गोवंशीयों का हर रोज बध कर दिया जाता है। राजमार्गो पर पुलिस मवेशी लदे वाहनों से पैसा वसूलती है। अभी बंग्लादेश की सीमा पर पशु तस्करों और सीमा सुरक्षाबलों की झड़प में हमारे जवान शहीद हो गए। इस पर क्यों नहीं बवाल खड़ा किया गया। यह हमारे विमर्श का केंद्र क्यों नहीं बना।

स्लाटर हाउसों में किस तरह के मवेशियों का कत्ल होता है कौन नहीं जानता। घूमंतू सांड फसलों को चट कर रहे हैं। नीलगाय के बाद यह दूसरी सबसे बड़ी समस्या है। प्रधानमंत्री की यह बात गौर करने लायक है कि अगर देश की प्रगति करनी है तो शांति, एकता और सद्भाव के मुख्यमंत्र की उपेक्षा नहीं की जा सकती। देश के विकास का मुख्य स्रोत देश की एकता है। समाज को बांटने वाली राजनीति से तौबा करना चाहिए। अब वक्त आ गया है जब देश में सबका साथ सबके विकास की बात होनी चाहिए। गाय और उसकी रक्षा की चिंता करने वाले गोरक्षों की बात जायत है। लेकिन हमारे प्रधानमंत्री की पीड़ा का भी खयाल रखना चाहिए। क्योंकि 2017 में यूपी और गुजरात में आम चुनाव होने है। ऐसी स्थिति में दलितों की नाराजगी भाजपा को मुश्किल में डाल सकती है। जिसके चलते दलितों पर मोदी जी की चिंता लाजमी है। निश्चित तौर पर गाय हमारे लिए आस्था है लेकिन राजनीति का विषय नहीं। उसकी रक्षा की बात होनी चाहिए। लेकिन गाय पर राजनीति बंद होनी चाहिए।

लेखक प्रभुनाथ शुक्ल स्वतंत्र पत्रकार हैं. संपर्क 8924005444 , 7052124090

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