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23.11.16

मजीठिया वेतनमान: खाता नहीं अधिकार भी सीज कराने से बनेगी बात

मजीठिया वेतनमान और अपने अधिकारों को लेकर आज लगभग हर पत्रकार जागरुक हो गया है। जब जरूरत है एकता की। सवाल यह उठता है कि नौकरी सुरक्षित रखने के साथ ही कैसे अपना हक पाए? इसके लिए मालिकों के खते नहीं बल्कि अधिकार सीज कराने की जरूरत है।


क्या करना होगा
पहले तो एक जिले के सभी प्रेस के पत्रकार-गैर पत्रकारों को एकजुट होकर कलेक्टर के पास जाना होगा। यहां इस बात का ध्यान करें कि निजी स्वार्थ को लेकर यूनियन बनाने वाले और प्रेस मालिकों के यूनियन का साथ बिल्कुल ना लें। कई यूनियन ऐसी हैं जो गैरपंजीकृत है। इसलिए एक एकता को नया नाम दें।
चूंकि आरआरसी राशि वसूलने का अधिकार कलेक्टर को है। इसलिए कलेक्टर से यह मांग करनी होगी कि इतने पत्रकारों और गैर पत्रकारों का वेतन यह-यह कंपनी दबाए बैठी है। इसके लिए शीघ्र आरआरसी जारी करें। और कंपनी के वित्तीय देयक विवाद की स्थिति तक कलेक्टर या जिला प्रशासन द्वारा नियुक्त प्रतिनिधि की अनुमति से हो।

अधिकार सीज करें
चूंकि मजीठिया वेतनमान की मांग करने वाले अनेक कर्मचारियों को कंपनी मालिकों के कोप का भाजन होना पड़ा है जिससे औद्योगिक अशांति फैली हुई है, इसलिए विवाद की स्थिति तक कंपनी कोई प्रशासनिक निर्णय कलेक्टर और कर्मचारी यूनियन की सहमति से ही ले। जिसमें इस बात को भी ध्यान में रखा जाए कि मजीठिया वेतनमान मांग करने वाले कर्मचारी के विरुद्ध तो कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है। या कंपनी का ऐसा कदम जो कर्मचारी को सिर्फ प्रताडि़त करने के उद्देश्य से किया हो ऐसे आदेशों को समय रहते रोका जा सके। इसलिए कंपनी के प्रशासनिक और वित्तीय अधिकारों को विवाद की स्थिति तक सीज किया जाए। इसके लिए जिलाधिकारी और श्रम अधिकारी अपने विशेषाधिकार का उपयोग करें।

अथॉरिटी लेटर दें
सामान्यत: कुछ कलेक्टर और श्रमाधिकारी प्रेस मालिकों और राजनेताओं के दबाब में हो सकता है ऐसा करने से मना करें और फिर कानूनी दांव-पेंच में फंसा दें। ऐसे में सभी कर्मचारी गोपनीय अथॉरिटी लेटर एक व्यक्ति के नाम जारी करें। जिससे जब तक कानूनी कार्यवाही चलेंगी अन्य कर्मचारी कोर्ट कचेहरी के चक्कर से मुक्त रहेंगे और ऐसे में पता नहीं चलेगा कि कौन अथॉरिटी लेटर जारी किया है या नहीं। खैर एकता की भीड़ के आगे यह सब करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। इसके बाद मुख्यमंत्री और पीएम से मिलने की जरूरत है। जिससे प्रेस मालिकों को ऊपर से मिल रही संजीवनी बंद हो जाए। चूंकि हम पत्रकारों की एकता प्रेस मलिकों के लाख गुना ज्यादा है। लेकिन यह अनेकता के कारण बिखरी हुई है। इसलिए अपने हक के लिए सभी पत्रकार एकजुट हो।

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