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15.1.17

बस्तर में आपात स्थिति : मानवाधिकार कर्मियों पर हमले, प्रवेश के लिए पुलिस से लेनी होती है इजाजत



दिल्ली । तेलंगाना लोकतांत्रिक मंच की सदस्य एडवोकेट के. सावित्री ने चेतावनी देते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ में लोकतंत्र का दम घोंटा जा रहा है। सावित्री एडवोकेट बाल्ला रवींद्रनाथ की पत्नी हैं। रवींद्रनाथ उस सात सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग टीम के सदस्य हैं जिसे क्रिसमस के दिन बस्तर जाते वक्त छत्तीसगढ़ पुलिस ने उठा लिया। फोरम फॉर रिलीज ऑफ पॉलिटिकल प्रिजनर्स की तेलंगाना इकाई के सचिव रवींद्रनाथ और उनके साथियों पर कुख्यात छग जन सुरक्षा अधिनियम लगाया गया है और उनके सहित मानवाधिकार जांच दल के सभी सात सदस्यों को बगैर जमानत सुकमा जेल में बंद किया गया है।


वीमेन अगेंस्ट सेक्सुअल वॉयलेंस ऐंड स्टेट रिप्रेशन (डब्ल्यूएसएस) और सिटिजंस फॉर पीस ऐंड जस्टिस इन छत्तीसगढ़ द्वारा १२ जनवरी २०१७ को दिल्ली के वीमेंस प्रेस क्लब में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में एडवोकेट सावित्री ने उन दिल दहला देने वाली परिस्थितियों को सामने रखा जिनका सामना जेल मे उनके पति और उनके साथियों को करना पड़ रहा है। वहां उनको पीटा जाता है, उनको प्रताडि़त किया जाता है और ऐसी 'स्वीकारोक्तियों' पर हस्ताक्षर कराए जाते हैं कि वे माओवादियों से जुड़े विमुद्रीकृत नोट ले जा रहे थे। उन्होंने दंतेवाड़ा की विशेष नक्सल अदालत की हास्यास्पद कार्रवाई का भी ब्योरा दिया जहां तमिल साहित्यिक पत्रिकाओं, दैनिक अखबारों और गिरफ्तार लोगों से जब्त अन्य किताबों को 'माओवादी साहित्य' बताकर पेश किया गया। वहां न्यायाधीश ने यह कहकर जमानत देने से इनकार कर दिया कि टीम छत्तीसगढ़ में बिना इजाजत आई थी। उन्होंने बताया कि कैसे बसों में भरकर महिलाओं और बच्चों को अदालत में पेश किया गया और उनको बिना किसी सुनवाई या कानूनी मदद के सीधे जेल भेज दिया गया। कैदियों को हाथ और पैर में चेन बांधकर अदालत में पेश किया गया था।

एडवोकेट सावित्री ने आरोप लगाया कि बस्तर के आईजी एसआरपी कल्लूरी आम नागरिकों को नक्सल बताकर उन्हें मार रहे हैं। मुठभेड़ों में मारे जाने वाले लोग न नक्सल हैं और न ही ये मुठभेड़ें असल मुठभेड़ें हैं। उन्होंने कहा कि कोई भी व्यक्ति जो राज्य शासन पर प्रश्न खड़े करता है उसे नक्सल बता दिया जाता है। उन्होंने कहा कि स्थानीय  न्यायपालिका भी पुलिस के इस दावे को स्वीकार कर चुकी है कि बस्तर में घुसने वाले हर व्यक्ति को पुलिस की इजाजत लेनी चाहिए भले ही वह किसी भी काम से जा रहा हो।

पैनल में शामिल अन्य लोगों- प्रोफेसर नंदिनी सुंदर, एडवोकेट शालिनी गेरा, एडवोकेट वृंदा ग्रोवर, शोधकर्ता एवं पत्रकार विनीत तिवारी और डब्ल्यूएसएस की कार्यकर्ता रिनचिन ने बस्तर में व्याप्त भयावहता पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि बस्तर में मानवाधिकार की रक्षा के लिए काम करने वालोंं को पुलिस निशाना बनाती है। पुलिस के  समर्थन प्राप्त गुंडे भी लोगों को धमकाते हैं, उन पर झूठे मुकदमे थोपने और मारपीट करने की धमकी दी जाती है।

सभी वक्ताओं ने एनएचआरसी के सात जनवरी के उस आदेश का स्वागत किया जिसमें उसने 16 आदिवासी महिलाओं को प्रथम दृष्टया राज्य पुलिस के बलात्कार, यौन हमले, शारीरिक हमले का पीडित माना और कहा कि राज्य सरकार मानवाधिकारों के उल्लंघन की परोक्ष जिम्मेदार है। वक्ताओं ने फर्जी मुठभेड़, जबरन आत्मसमर्पण, सामूहिक बलात्कार और यौन हमलों की लगातार आ रही रपटों की ओर भी ध्यान दिलाया। यौन हिंसा को इस क्षेत्र में बतौर हथियार इस्तेमाल किया जा रहा है।

सलवा जुडूम मामले की मुख्य याचिकाकर्ता प्रोफेसर नंदिनी सुंदर ने सामाजिक कार्यकर्ताओं पर किये जा रहे हमलों के बारे में कहा कि चूंकि वे ताड़मेटला जैसे मामलों में पुलिस के अत्याचारों का सच सामने ला रहे हैं इसलिए उनके खिलाफ यह प्रतिहिंसा की जा रही है। ताड़मेटला में पुलिस ने निहत्थे ग्रामीणों पर बलात्कार और हिंसा जैसे औजार आजमाये और तीन गांवों को पूरी तरह जलाकर खाक कर दिया। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने बार-बार सर्वोच्च न्यायालय और एनएचआरसी के आदेशों का उल्लंघन किया और वह आईजी कल्लूरी के अवैध और गैरवाजिब कामों का बचाव करती आ रही है।

आईजी कल्लूरी ने गर्वपूर्वक दावा किया था कि मिशन 2016 के अधीन 134 नक्सलियों को मारा गया। इनमें से कई मुठभेड़ें सोच-समझ कर की गयी हत्यायें थीं। एडवोकेट शालिनी गेरा ने एक मामले का जिक्र किया जिसमें नौ साल के एक बच्चे को गोली मार दी गई और उसे खतरनाक नक्सली बताया गया। उन्होंने कहा कि वह और उनके साथी एक अदालती आदेश की जांच के और एक युवा को फर्जी मुठभेड़ में मारे जाने के मामले में दोबारा पोस्टमार्टम की मांग को लेकर बस्तर में थे। उस वक्त एक एसडीएम ने उन्हें धमकाया था। तेलंगाना टीम की ही भांति एडवोकेट शालिनी पर भी माओवादियों के पुराने नोट बदलने का आरोप लगाया गया है।

विनीत तिवारी ने मई २०१६ में अपने दौरे के दौरान बस्तर के गांवों में दिखी गरीबी और असहायता का वर्णन किया। उन्होंने यह भी बताया कि अनेक गाँवों से हमें ग्रामीणों ने शिकायत की कि उन्हें २००८-०९ के वक़्त नरेगा के तहत किये गए कार्य कभी आज तक भुगतान नहीं हुआ है। इन हालात के खिलाफ अगर कोई बोलने की कोशिश करे, चाहे वो मानवाधिकार कार्यकर्त्ता हों या राजनीतिक कार्यकर्त्ता या अकादमिक शोधकर्ता, तो उन्हें झूठे मामलों में फंसाया जाता है। राज्य पुलिस स्थानीय आदिवासियों को डरा-धमका कर रखती है। उन्होंने कहा कि बस्तर में हर कोई पुलिस की गोलियों के खौफ में जी रहा है। बहुत कम दूरी पर फौजी छावनियों जैसे कैंप लगे हुए हैं जो रातोंरात आदिवासी ग्रामीणों की फसल नष्ट करके उनके खेतों पर तान दिए जाते हैं और उसका उन्हें कोई मुआवजा भी नहीं दिया जाता।  रिनचिन ने यौन हिंसा की शिकार आदिवासी महिलाओं के हौसलों और उनके साहस का जीवंत ब्योरा पेश किया। उन्होंने बताया कि कैसे वे महिलाएं घंटों चलकर पुलिस स्टेशन पहुंचीं, उनको वहां से भगाया गया लेकिन वे बार-बार वहां गईं और आखिरकार उनके मामलों में एफआईआर करनी पड़ी। उन्होंने बताया कि हर कदम पर परेशान और प्रताडि़त किए जाने के बावजूद शिकायतकर्ता न्याय पाने और दोषियों को दंडित कराने के लिए प्रतिबद्घ हैं। उन्होंने एनएचआरसी से मांग की कि वह अपराधियों का अभियोजन सुनिश्चित करे और इस मामले में मुख्य जिम्मेदारी का सिद्घांत लागू किया जाए।

अब आईजी कल्लूरी ने मिशन 2017 के रूप में 'सफेदपोश नक्सलियों' के खिलाफ जंग का ऐलान किया है। कल्लूरी का कहना है कि ऐसे लोग खुद नक्सलियों की तुलना में अधिक खतरनाक हैं। जमीनी हालात के बारे में बताते हुए अधिकवक्ता और मानवाधिकार कार्यकर्ता वृंदा ग्रोवर ने कहा कि कल्लूरी और उनकी हिंसक गैंग संविधान प्रदत्त लोकतांत्रिक अधिकारों का जमकर हनन कर रही है। वह लोगों के निर्बाध आवागमन, न्यायिक प्रतिनिधित्व और विध के समक्ष समानता के प्रावधानों का भी उल्लंघन कर रही है।

उन्होंने सवाल उठाया कि छत्तीसगढ़ में घुसने के लिए किसी को इजाजत क्यों लेनी चाहिए? क्या छत्तीसगढ़ भारत से अलग हो गया है? उन्होंने कहा कि हालांकि एनएचआरसी ने अन्य बलात्कार पीडि़तों के वक्तव्यों की रिकॉर्डिंग मांगी है लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि राज्य के मौजूदा माहौल में यह कैसे होगा जबकि तमाम सांविधिक प्राधिकारियों और उनकी मदद करने वालों तक को प्रताडि़त किया जा रहा है और धमकाया जा रहा है। आखिर पीडि़त ग्रामीण अपनी बात कैसे कहेंगे, शिकायत कैसे करेंगे या कानूनी मदद कैसे पाएंगे? वक्ताओं ने मीडिया और तमाम लोकतांत्रिक संगठनों से आह्वान किया कि वह बस्तर के हालात को लेकर अपनी खामोशी तोड़े और सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर वहां लोकतंत्र बहाली और कानून का शासन लाने के लिए काम करे।

1 comment:

HindIndia said...

बहुत ही अच्छा आर्टिकल है। Very nice .... Thanks for this!! :) :)