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9.4.17

आँख के बदले आँख तो एक दिन सभी अंधे

वाह रे ! ऐसी ओछी मानसिकता वह भी आज के इस आधुनिक युग में जब दुनिया शिक्षित एवं सभ्य तथा जागरूप एवं बुद्धि जीवी का प्रमाण लिए घूम रही है। बड़े आश्चर्य एवं शर्म की बात है। जो घटना ग्रेटर नोएडा में घटी है वह अत्यंत निंदनीय है। नाईजीरियाई मूल के निवासियों को निशाना बनाया गया है। कुछ अराजक युवकों के द्वारा यह शर्मनाक कुकृत्य अंजाम दिया गया है। जो हमारी सांस्कृति के विपरीत है।


कुछ विदेशी पुरुष नागरिकों को मॉल के अंदर एवं सड़क पर निशाना बनाया गया। यह अति निंदनीय है।.... क्या यही हमारी संस्कृति है। क्या अतिथियों का आवभगत हम इसी तरह से करते हैं। क्या हमारे संस्कार अब यहाँ तक आ पहुँचे हैं कि हम अपनी संस्कृति तथा अतिथियों का सम्मान तक भूल गए।..... सोचना पड़ेगा कि हम शिक्षित हुए अथवा अशिक्षित? हमें तुलना करने के लिए विवश होना पड़रहा है अपने उन पूर्वजों से जिनके ऊपर आरोप अशिक्षता का लगाकर आज का समाज अपने आपको शिक्षित एवं सभ्य बताने का प्रयास करता है। अपने आपको बुद्धि जीवी एवं जागरूप कहता हुआ दिखाई देता है।

शिक्षा का क्या अर्थ होता है ? अब इसे गम्भीरता से समझना पड़ेगा। इस लिए की शिक्षा का रूप एवं रंग तथा आकार आज के समय में अजब दिखाई दे रहा है। विश्व विद्यालय से लेकरके सड़कों तक वह दृश्य दिखाई दे रहा है जिसकी कल्पना भी नहीं कि जा सकती। जिन युवाओं पर हमारा देश गर्व करता है। अपना आने वाला कल का भविष्य जिन युवाओं के नेत्रों से देखता है। जिन युवाओं के पैरों के माध्यम से देश आगे बढ़ने की आशा एवं उम्मीद करता है। जिन युवा कंधों पर देश अपना कल का भविष्य ढ़ोने की सोचता है। वही युवा आज देश की आशा को तार तार करते हुए दिखायी देते हैं। जिन युवाओं पर देश गर्व करता है। उन्हीं युवाओं में से कुछ युवा आवेश में आकरके अपनी जिम्मेदारियों को भूल बैठते हैं। और देश अथवा विश्व जगत में समस्याएँ खड़ी कर देते हैं। जिससे हमारे देश की छवि धूमिल होती है। यह अत्यंत चिंता एवं आत्म चिंतन का विषय है। इस पर कृप्या ध्यान दीजिए। आप ही इस देश के भविष्य हो। कल यह देश तुम्हारी ही आँखों से देखेगा कल तुम्हारे ही नेत्रों से इस देश को दूर दृष्टि मिलेगी। कल तुम्हीं इस देश के खेवनहार होगे। यह अत्यंत गम्भीर प्रश्न है।

क्या हिंसा से निदान हो सकता है। क्या हिंसा से सम्मान प्राप्त हो सकता है। क्या हिंसा से प्रगति हो सकती है।...... क्या अब हिंसा ही उचित एवं योग्य मार्ग है। जिसका हम प्रमाण देना चाहते हैं। अथवा जिसका हम प्रमाण दे रहे हैं। यह अत्यधिक चिंता का विषय है। आत्म चिंतन एवं मनन करने कि आवश्यकता है।

मात्र एक शंका के आधार पर हम यह शर्मनाक कार्य कर रहे हैं। जबकि आरोप किसी भी तरीके से उन बेगुनाहों पर सिद्ध नहीं हो रहा है।.....हम कानून को अपने हाँथों में ले करके उसको किस रूप से प्रस्तुत कर रहे हैं। अथवा करना चाहते हैं। क्या हमें इस बात का आभास है कि जो भी कार्य हम कर रहे हैं। उससे हमारे भारत को विश्व जगत में (हमारे द्वारा किए गए) इस कुकृत्य का उत्तर देना पड़ेगा। क्या हम यह सोचते हैं, क्या हम यह समझते हैं, क्या हम यह जानते हैं, क्या हमें इस बात का आभास है, अथवा नहीं।......सोचिए ?  शायद हमारी दुनिया छोटी है। शायद हम अपने देश को भी पूरी तरह से नहीं जानते होंगें तभी ऐसा कर रहे हैं।......विश्व जगत को मात्र मानचित्रों के आधार पर जानना इस कृत्य कि पुष्टि करता है।...... शायद हम संविधान से अवगत नहीं हैं। इसी लिए हम उत्तेजित होकर अनुचित कार्य कर देते हैं।.....

हमारे द्वारा किए गए अनुचित कार्यों को हमारे शीर्ष नेताओं को जवाब देना पड़ता है।...... क्या हमें इस नियम और कानून कि जानकारी है।..... क्या यह हमारे संज्ञान में है।.... क्या हम इससे अवगत हैं।...... हम तो आवेश में आकर के ऐसे कार्य कर देते हैं लेकिन विश्व जगत में यह एक बड़ा मुद्दा बन जाता है। जिसका उत्तर उस प्रतिष्ठित व्यक्ति को देना पड़ता है जोकि देश का नेतृत्व कर रहा होता है। जिसको हम देश की सर्वोच्च कुर्सी पर बैठाते हैं।

यह अत्यंत निंदनीय है कि मात्र शंका के कारण ऐसे अपराध को अंजाम दिया गया तथा दिया जा रहा है। जबकि अपराध सिद्ध होने कि भी दशा में हम कानून हाँथ में नहीं ले सकते । और स्वंय किसी को सजा नहीं दे सकते ।

अपराध सिद्ध होने कि दशा में अपराधी को सजा दी जाती है।...... एवं सजा देने का उद्देश्य उसे जीवन की मुख्य धाराओं से जोड़ना ही होता है।..... आँख के बदले आँख नहीं फोड़ी जाती। यदि आँख के बदले आँख फोड़ने की परम्परा आरम्भ हो जाएगी तो निश्चित एक दिन इस पृथ्वी पर सभी अंधे हो जाएंगें।..... अत: ऐसी ओछी मानसिक्ताओं को बदलने की अतिशीघ्र आवश्यक्ता है।

विश्व स्तर पर जहाँ आज कई देश नस्लीय हिंसा की आग में जल रहे हैं।..... जहाँ पर अपराध जन्म पर आधारित हो गया है। कर्म पर नहीं।..... काले समाज में जन्म लेना एक जघन्य अपराध कि भाँति हो गया। जहाँ पर नस्लीय हिंसा ने वह रूप धारण कर रखा है। कि किसी भी समय कहीं पर कुछ भी हो जाता है। एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की हत्या कर देता है।..... कारण बस इतना होता है कि वह काला व्यक्ति था। तो गोरे व्यक्ति ने उसकी हत्या कर दी।...... जहाँ काले समाज में जन्म लेना गुलामी तथा गोरे समाज में जन्म लेना एक शासक।.... की मानसिकता हो गई है। आज उन देशों की कितनी आलोचना हो रही है। वहीं पर भारत देश को सम्मान की नज़रो से देखा जाता है।

कृप्या अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाहन करने का अभ्यास करें।.... और इस ओर अपने कदम को बढ़ाएँ। हिंसा के मार्ग को त्यागकर अहिंसा के मार्ग पर यात्रा करना आरम्भ कर दीजिए इसलिए कि यह देश कल तुम्हारे ऊपर ही आधारित होगा।

विचारक
एम०एच० बाबू
mh.babu1986@gmail.com          

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