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13.9.17

वैश्वीकरण के दौर में फैल रही है हिंदी

14 सितम्बर, हिंदी दिवस पर विशेष 

सुरेन्द्र पॉल
वैश्वीकरण, बाज़ारीकरण और सूचना क्रांति के इस दौर में तत्क्षण बदलते वैश्विक परिदृश्य के बीच हिंदी भाषा एक नये जोश के साथ उभर रही है। आज भारत वैश्विक अर्थजगत में महाशक्ति बनकर उभर रहा है। विश्व के सर्वाधिक शक्तिशाली माने जाने वाले देश अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा तो अपने देश के नागरिकों को कई बार हिंदी सीखने की सलाह दे चुके हैं, क्योंकि उन्हें भी लगता है कि भारत एक उभरती हुई विश्व शक्ति है और भविष्य में हिंदी सीखना अनिवार्य होगा।

भारत की असली ताकत हिंदी भाषा है। आम बोलचाल की हिंदुस्तानी हिंदी को देश की आधी से अधिक जनसंख्या बोलती समझती है। विभिन्न भाषा-भाषियों के बीच अधिकतर हिंदी ही संवाद सेतु का काम करती है। व्यवसाय की दृष्टि से देखें तो बाज़ार बिकने वाली वस्तु की ताकत को देखता है। हिंदी भाषा में वह ताकत है। यही कारण है कि आज सर्वाधिक विज्ञापन भी हिंदी में आते हैं। इंटरनेट और सोशल मीडिया पर भी हिंदी का प्रभाव बढ़ रहा है। अब कई सॉफ़्टवेयर और हार्डवेयर अंतर्निर्मित हिंदी यूनिकोड की सुविधा के साथ आ रहे हैं। इससे हिंदी की तकनीकी समस्याएँ लगभग समाप्त हो गई हैं। अब समय है कि सभी इंटरनेट प्रयोक्ता रोमन लिपि में हिंदी लिखने के बजाय देवनागरी में ही हिंदी लिखें। अधिकांश बड़ी संचार कंपनियों को हिंदी में बड़ा उपभोक्ता बाजार दिख रहा है जिससे वे हिंदी तकनीक पर सभी सुविधाएँ प्रदान कर रही हैं। भारतीय युवा यूट्यूब पर सर्वाधिक 93 प्रतिशत वीडियो हिंदी में देखते हैं।

हिंदी पूरी तरह से सक्षम और समर्थ भाषा है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता तो यह है कि इसे जैसे बोला जाता है वैसा ही लिखा भी जाता है। यानी हिंदी भाषा पूरी तरह से ध्वनि और उच्चारण आधारित भाषा है। यह खूबी विश्व की अन्य किसी भी भाषा में नहीं है। अंग्रेजी सहित विश्व की अन्य भाषाओं के लिखने और बोले जाने में काफी अंतर होता है। हिंदी भाषा का जन्म संस्कृत भाषा से हुआ है। वैज्ञानिकों द्वारा संस्कृत और हिंदी भाषा को ध्वनि विज्ञान और दूरसंचारी तरंगों के माध्यम से अंतरिक्ष और अन्य अज्ञात सभ्यताओं को संदेश भेजे जाने के लिए भी सर्वाधिक उपयुक्त पाया गया है। कुछ वर्ष पूर्व तक हिंदी को गँवारों, जाहिलों और कम पढ़े-लिखे लोगों की भाषा माना जाता था, लेकिन वैश्वीकरण और बाजारीकरण के इस दौर में यह सोच तेजी से बदल रही है।   

भारत का कॉरपोरेट जगत मजबूरी में ही सही, हिंदी को हाथों-हाथ स्वीकार कर रहा है। भारत में उपभोक्ता वस्तुओं के वृहद् बाज़ार को आज अनदेखा करना असंभव है। विदेशी कंपनियों के लिए भारतीय बाज़ारों के खुलने के साथ ही कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भारत में पदार्पण किया। विपणन (मार्केटिंग) और व्यापार में भारतीयों से कहीं ज्यादा माहिर इन कंपनियों का यह अनुभव था कि किसी भी देश में वहां की भाषा, संस्कृति और ज़ायका जाने बिना अपने पाँव जमाना आसान नहीं है। ऐसे में इन कंपनियों ने अपने उत्पादों को भारतीय ज़रूरतों के हिसाब से ढालकर पेश किया। अपने उत्पादों के विपणन के लिए इन कंपनियों ने हिंदी भाषा को चुना, क्योंकि यह भाषा सबसे बड़े ‘लक्ष्य समूह’ तक पहुंचती है। “ग्रेट इंडियन मिडिल क्लास” से संबंध रखने वाले इस बाज़ार में 50 प्रतिशत से अधिक लोग या तो हिंदी भाषी हैं या दूसरी भाषा के तौर पर हिंदी का प्रयोग करते हैं। ऐसे में यह एक सुकुन देने वाला समाचार है कि हिंदी भाषा का भारत में ही नहीं, बल्कि समूचे विश्व में विस्तार हो रहा है।
 
यहां हिंदी से पर्याय साहित्य की कलिष्ट भाषा से नहीं है, बल्कि आम बोलचाल की भाषा से है, जिसका उपयोग आज का मीडिया खुलकर कर रहा है। ऐसे में हिंदी के कुछ पैरोकार बदलते सांस्कृतिक परिदृष्य में भाषा के बदलते (बिगड़ते !) स्वरूप के प्रति चिंतित भी दिखाई दे रहे हैं, लेकिन इस बीच यह भी स्पष्ट हो रहा है कि हिंदी को अंग्रेजी से सीधे तौर पर कोई खतरा नहीं दिखाई देता। आज व्यापार को विस्तार के लिए हिंदी का दामन थामना पड़ रहा है और हिंदी बाज़ार के साथ आगे बढ़ रही है। मीडिया और विज्ञापनों में हिंदी का प्रयोग बहुत अधिक बढ़ा है। हालांकि इसका उद्देश्य हिंदी की सेवा कदापि नहीं है, बल्कि बहुराष्ट्रीय और देशी कंपनियों की नज़र हिंदी भाषी उपभोक्ताओं के एक बड़े बाज़ार पर है।

पिछले एक हजार वर्षों से अधिक समय से भारत में हिंदी का व्यापक उपयोग होता आ रहा है। अपभ्रंश से प्रारंभ हुआ हिंदी का रचना संसार आज परिपक्वता के चरम पर है। हिंदी भाषा अनेक रूपों में आंचलिक और स्थानीय बोलियों के रूप में भी प्रचलित है। अग्रेजों के भारत आगमन से पूर्व ही हिंदी ने अपनी जड़ें समूचे भारतीय उपमहाद्वीप में जमा दी थीं। उस समय का भारत आज की ही तरह विश्व व्यापार का एक महत्वपूर्ण भागीदार था। इसलिए इस देश की जनता के साथ कार्य-व्यवहार करने के लिए हिंदी का समुचित ज्ञान होना आवश्यक था।

भारतीय संविधान में हिंदी को राजभाषा बनाने का उपबंध 14 सितम्बर 1949 को जोड़ा गया था, इसलिए हर साल 14 सितम्बर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। 26 जनवरी 1950 को संविधान के लागू होने के साथ ही संविधान के अनुच्छेद 343 के उपबंध एक के अंतर्गत देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली हिंदी को भारतीय संघ की राजभाषा का दर्जा दिया गया। हिंदी को राजभाषा का दर्जा तो दे दिया गया, लेकिन इसी अनुच्छेद के उपबंध तीन में यह प्रावधान किया गया कि राजभाषा हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी को अगले 15 वर्षों तक सहभाषा के रूप में जारी रखने का अधिनियम देश की संसद बना सकती है। बाद में 1967 में तत्कालीन प्रधानमन्त्री इन्दिरा गाँधी ने राजभाषा अधिनियम में संशोधन कर अंग्रेजी को अनिश्चित काल के लिए भारत की सहभाषा बना दिया। यही उपबंध हिंदी के विकासपथ पर एक बहुत बड़ा रोड़ा साबित हुआ और आज भी केंद्र और कई राज्यों का कामकाज अंग्रेजी में ही चल रहा है। राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में और क्षेत्रवाद के कारण हिंदी को पर्याप्त शासकीय संरक्षण प्राप्त नहीं हो सका। रही-सही कसर देश के देश के अंग्रेजी परस्त नौकरशाहों ने पूरी कर दी, जिन्होंने अंग्रेजी को ही राष्ट्रभाषा की तरह गले लगाया।

हिंदी भाषा अंग्रेजी और चीनी के बाद विश्व में सर्वाधिक प्रसार वाली तीसरी भाषा है। हालांकि विस्तार के दृष्टिकोण से देखें तो अंग्रेजी के बाद हिंदी सबसे विशाल क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा है। दुनिया के 150 से अधिक विश्विवद्यालयों में हिंदी भाषा पढ़ाई जाती है। हजारों की संख्या में विदेशी छात्र हिंदी सीख रहे हैं और भारत के कई शिक्षक भी विदेशों में हिंदी को विस्तार देने के पुनीत कार्य में जी-जान से जुटे हैं। आशा है कि आने वाले समय में हिंदी गँवारों, जाहिलों और कम पढ़े-लिखों की भाषा होने के अभिषाप से पूरी तरह से मुक्त हो जाएगी।

सुरेन्द्र पॉल
प्रभारी, सांस्कृतिक अध्ययन विभाग
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय

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